A historical place (Jallianwala Bagh)

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एक ऐतिहासिक स्थान (जलियांवाला बाग)

        इतिहास की किसी महान घटना से जुड़कर साधारण सा स्थान भी ऐतिहासिक बन जाता है। उसकी महत्ता किसी तीरथ से कम नहीं होती। श्री गुरु  रामदास जी की पवित्र नगरी अमृतसर में स्वतंत्रता आंदोलन का एक ऐतिहासिक पड़ाव जिला वाला बाग है। ऐसे ही स्थानों के संबंध में किसी कवि ने कहा है:

 शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मिटने वालों का यही बाकी निशां होगा।

        जलियांवाला बाग अमृतसर पंजाब भारत में स्थित एक ऐतिहासिक स्थान था।यह एक शांतिपूर्ण बगीचा था जहां लोग मनोरंजक गतिविधियों के लिए या राजनीतिक मुद्दों पर चर्चा करने के लिए इकट्ठा होते थे।हालाँकि 13 अप्रैल, 1919 को यह शांत स्थान डरावनी और रक्तपात की जगह में बदल गया जिसने भारतीय इतिहास के पाठ्यक्रम को हमेशा के लिए बदल दिया।

रोलेट एक्ट लागू

         यह सब तब शुरू हुआ जब ब्रिटिश सरकार ने रोलेट एक्ट लागू किया। एक ऐसा कानून जिसने सरकार को लोगों को बिना वारंट के गिरफ्तार करने और बिना मुकदमे के हिरासत में लेने की अनुमति दी।इस अधिनियम को नागरिक स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए खतरे के रूप में देखा गया और इसने पूरे भारत में विरोध की लहर पैदा कर दी।

एक जनसभा का रूप

          अमृतसर में विरोध ने जलियांवाला बाग में आयोजित एक जनसभा का रूप ले लिया।  बैठक शांतिपूर्ण थी और लोग रोलेट एक्ट और इसका विरोध करने की आवश्यकता पर चर्चा कर रहे थे।हालाँकि, जब ब्रिटिश अधिकारियों ने भीड़ को बलपूर्वक तितर-बितर करने का फैसला किया। तो चीजों ने एक गहरा मोड़ ले लिया।

निकास को अवरुद्ध

        अधिकारियों ने बगीचे के एकमात्र निकास को अवरुद्ध कर दिया और जनरल रेजिनाल्ड डायर के नेतृत्व में सैनिकों के एक समूह को निहत्थे भीड़ पर गोलियां चलाने का आदेश दिया।लगभग दस मिनट तक गोलीबारी जारी रही और एक हजार से अधिक लोग मारे गए या घायल हुए।  क्रूर नरसंहार ने पूरे भारत और दुनिया को झकझोर कर रख दिया।

हत्याकांड की खबर 

      जलियांवाला बाग हत्याकांड की खबर जंगल की आग की तरह फैल गई और इसने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को प्रेरित किया।महात्मा गांधी जो तब अंग्रेजों के खिलाफ असहयोग आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे ने देशव्यापी विरोध का आह्वान किया और मांग की कि ब्रिटिश सरकार नरसंहार के लिए माफी मांगे और जिम्मेदार लोगों को दंडित करे।

       हालाँकि ब्रिटिश सरकार ने जनरल डायर के खिलाफ माफी मांगने या कोई कार्रवाई करने से इनकार कर दिया।इसके बजाय उन्होंने मोंटागु-चेम्सफोर्ड सुधारों को पारित किया जिसने भारत को सीमित स्वशासन प्रदान किया लेकिन पूर्ण स्वतंत्रता के लिए भारतीय मांगों से कम हो गया।

मानस पर एक धब्बा

         जलियांवाला बाग हत्याकांड दशकों तक भारतीय मानस पर एक धब्बा बना रहा और यह ब्रिटिश दमन और भारतीय प्रतिरोध का प्रतीक बन गया।  उद्यान अपने आप में एक तीर्थस्थल बन गया और पूरे भारत से लोग उन शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए आए। जिन्होंने आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी।

      1951 में भारत सरकार ने जलियांवाला बाग को राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया और शहीदों की याद में एक स्मारक बनाया।  स्मारक में एक लंबा स्तंभ है जिसमें एक शाश्वत लौ और एक पट्टिका है जिस पर लिखा है,"यह लौ उन लोगों के बलिदान की याद दिलाती है जो 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग में हुए नरसंहार में मारे गए थे और उन सभी के लिए जिन्होंने इसके लिए संघर्ष में अपनी जान दे दी थी।  भारत की आज़ादी।"

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    जलियांवाला बाग का रूप

            जलियांवाला बाग आज जिस रूप में है, 1919 में ऐसा नहीं था चोक फव्वारा की ओर से सीधे जाने पर संतरे से बाजार में संकरी गली अंदर जाती थी। चारों और मकानों में गिरा हुआ बीच में एक खुला स्थान था ।यह आज की तुलना में उस समय लगभग 5 फुट गहरा था। बाएं हाथ एक कुँआ था और कुए के सामने की और दाएं तरफ एक ही मंदिर था। जिसके साथ पीपल का एक पेड़ था। बाग केवल कहने को ही था ।दरबार साहब भी पास की दाई और स्थित है।

    सन् 1919 की बैसाखी की घटना

               सन् 1919 की बैसाखी की घटना है। उस दिन जलियांवाला बाग में एक बहुत बड़ी जनसभा का आयोजन किया गया था। उसमें बड़े-बड़े नेताओं ने भाषण देने थे। शाम का समय था। लगभग 20,000 लोग उपस्थित थे ।भाषण आरंभ हो गए थे। तभी जनरल डायर अपने सैनिकों के साथ बाग में आ पहुंचा। उसने आते ही सभा भंग करने का आदेश दिया ।कानून का पालन करते हुए सभा भंग कर दी गई किंतु एक ही तंग रास्ते से इतने लोगों का तत्काल बाहर निकल जाना असंभव था। उसने गोली चलाने का आदेश 3 मिनट बाद ही दे दिया ।गोली चारों और घुमाकर चलाई गई ।भागते हुए लोगों पर भी गोलियां बरसाई गई ।डायर के सैनिकों के पास 16 सौ राउंड थे ।उन्होंने वह सारे के सारे ही दाग दिए।

    गोलीकांड में मरने वालों की संख्या 

          इस गोलीकांड में मरने वालों की सही संख्या का कोई पता नहीं ।अनेक लोग गोलियों का शिकार हुए। अनेक भगदड़ में कुचले गए और कई व्यक्ति गोलियों से बचने के लिए कुएं में कूदे और वहां डूब कर मर गए। जो घायल व्यक्ति बच सकते थे ।उनको किसी प्रकार की प्राथमिक सहायता दी ही नहीं गई। अनुमान है मरने वालों की संख्या हजारों में थी। रात के समय चारों ओर से कराहने की आवाजें गूंजती थी। कुत्ते लाशों को नोचते थे।सहायता करने वाला कोई न था। अंग्रेजी राज्य में सब कुछ ठीक-ठाक था।

    जनरल डायर फौजी होने के कारण

             जनरल डायर फौजी होने के कारण हर चीज का इलाज गोली समझता था। उसका विचार था कि अब हिंदुस्तानियों को सबक सिखा दिया है। अब वह आजादी की बात नहीं करेंगे।

    हत्याकांड के विरुद्ध 

               इस हत्याकांड के विरुद्ध सारे देश में हाहाकार मच गई। गांधी जी और अन्य बड़े नेता इस अत्याचार को सुनकर चुप न रह सके। जगह-जगह इसके विरुद्ध भाषण हुए लेख लिखे गए। परिणाम यह हुआ कि सारे देश में शोक और असंतोष की एक लहर उठ खड़ी हुई। शासन ने भी दमन चक्कर तेज कर दिया ।अमृतसर तथा पंजाब के अन्य कई शहरों में मार्शल ला लगा दिया गया। मार्शल ला के अधीन लोगों को पेट के बल रेंगने पर विवश किया गया। कोड़ो से पीटा गया। लगभग 300 निरपराध व्यक्तियों को पकड़कर मनमानी सजाएं सुनाई गई।51 व्यक्तियों को फांसी और 46 व्यक्तियों को आजीवन कारावास की सजा दी गई। अनेक व्यक्तियों को 3 से लेकर 10 वर्ष तक का कठोर कारावास दे दिया।

    लोगों के आंसू

     लोगों के आंसू पोछने के लिए सरकार ने जांच पड़ताल के लिए एक कमेटी नियुक्त कर दी। इस कमेटी ने डायर को निरपराध और निहतथी जनता का दोषी ठहराया। ठीक है, बलवान मारे और रोने भी ना दें। कांग्रेस के नेताओं ने भी अपनी ओर से जांच की सारा दोष जनरल डायर दायर का ही था।

    हत्याकांड ने लोगों को सचेत 

          इस हत्याकांड ने लोगों को और भी सचेत कर दिया। मन ही मन सब सोचने लगे कि ऐसे अत्याचारी राज्य की समाप्ति होनी ही चाहिए। शहीदों का लहू व्यर्थ नहीं जाता ।रंग लाकर ही रहता है।

    कांग्रेस ने एक ट्रस्ट बनाकर जलियावालाबाग खरीद

             कांग्रेस ने एक ट्रस्ट बनाकर जलियावालाबाग खरीद लिया और 1947 तक अमृतसर में होने वाली सवाधीनता संग्राम संबंधित सभी सभाएं प्राय: वही होती रही। पंडित नेहरू, सुभाष चंद्र बोस, श्री राजेंद्र प्रसाद , मोहन मालवीय ,भोला भाई, देसाई डॉक्टर खान साहब ,सहगल ढिल्लों, शाहनवाज आदि सभी विभूतियों ने शहीदों की इस धरती की वंदना की।

     अब जलियांवाला बाग को भर्ती डालकर ऊंचा करवा दिया गया बीच में लाल पत्थर का एक स्तंभ है जिसे स्वतंत्रता की लोग के रूप में बनाया गया है दाएं बाएं हाथ लाल पत्थर के ही बरामदे बनाए गए हैं दायर की गोलियों के निशान अभी विचारों और के मकानों को दीवारों पर कुवे की और शिव मंदिर की दीवार पर सुरक्षित हैं अमृतसर आने वाला हर पर्यटक जलिया वाले बाग का दर्शन अवश्य करता है।

    हर वर्ष बैसाखी वाले दिन

            अभी भी हर वर्ष बैसाखी वाले दिन यहां शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है। दूर-दूर से लोग आते हैं। सभी दलों के नेता एवं विभिन्न संस्थाओं के प्रतिनिधि स्वतंत्रता की लोग पर पुष्प चढ़ाते हैं। पुलिस की ओर से सलामी दी जाती है और 2 मिनट मौन धारण किया जाता है।जलियां वाला बाग देश के शहीदों का राष्ट्रीय मंदिर है।

    एक तीर्थस्थल

              आज जलियांवाला बाग भारतीयों के लिए एक तीर्थस्थल है। विशेषकर उनके लिए जो स्वतंत्रता और लोकतंत्र के आदर्शों में विश्वास करते हैं।यह उन लोगों के बलिदानों की याद दिलाता है जिन्होंने भारत की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी और हमारी कड़ी मेहनत से मिली आजादी को संरक्षित और संजोए रखने का महत्व है।

            जैसे ही मैं स्मारक के सामने खड़ा हुआ।हवा में लौ को झिलमिलाता देख मुझे उन बहादुर आत्माओं के लिए गर्व और आभार की भावना महसूस हुई जिन्होंने हमारे देश के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया।मैंने महसूस किया कि जलियांवाला बाग सिर्फ एक ऐतिहासिक स्थान नहीं था बल्कि भारतीय लोगों की भावना और लचीलेपन का प्रतीक था।

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