(Hindi Poems)Hindi Language

  (Hindi Poems)Hindi Language

      तब याद तुम्हारी आती है

 जब बहुत सुबह चिड़ियांँ उठकर 

कुछ गीत खुशी के गाती है,

 कलियाँ दरबाजे खोल-खोल

 जब दुनिया पर मुस्काती है।

           खुशबू की लहरें जब घर से

           बाहर आ दौड़ लगाती हैं,

           हे जग के सिरजनहार प्रभु !

           तब याद तुम्हारी आती है।

 जब छम-छम बूंँदे गिरती हैंं।

बिजली चम-चम कर जाती है,

 मैदानों में वन- बागों में,

 जब हरियाली लहराती है।

             जब ठंडी-ठंडी हवा कहीं

             से मस्ती ढोकर लाती है।

             हे जग के सिरजनहार प्रभो!

             तब याद तुम्हारी आती है।

                कुछ काम करो

     कुछ काम करो, कुछ काम करो,

     जग में रहकर कुछ नाम करो ।

             यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो,

             समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो ।

             कुछ तो उपयुक्त करो तन को,

              नर हो, न निराश करो मन को।

    प्रभु ने तुझको कर दान किए,

     सब वांछित वस्तु विधान किए।

     तुम प्राप्त करो उनको न अहो,

     फिर है किसका यह दोष कहो।

              समझो ना अलभ्य है किसी धर्म को,

               नर हो, न निराश करो मन को।

                  होली

     रंग-रंँगीला देश हमारा,

     रंग बिरंगी होली है ।

    रंग-बिरंगी होकर निकली ,

    आज हमारी टोली है।

                 किसी हाथ में पिचकारी,

                 किसी हाथ में रोली है।

                 सबके मन में प्रेम-भाव है,

                  चलती हंँसी-ठिठोली है।

    सबके मुखड़े, रंँगे-पुते हैं,

    कौन राम है ,कौन किशन?

    भेदभाव की बात न कोई,

    आज मिले हैं सबके मन।

                    चलो सभी पकवान मिठाई,

                    बांँटे, खाए होली में।

                    एक रंँग में सब रंँग जाए,

                    मिलकर गाएँ होली में ।

    आगे बढ़कर गले मिले हम,

     स्नेह लुटाएँ होली में ।

     कभी किसी पर कालिख-कीचड़,

     नहीं लगाएंँ होली में।

    https://hindilanguage09.blogspot.com/2023/03/h-poems_02111660179.html


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                जादू

     मिट्टी से पौधा निकला,

     पौधे पर एक फूल खिला।

     उसे हवा ने सहलाया,

     चिड़ियों ने गाना गाया।

     जादू है जी ,जादू है !

                 वह देखो ,सूरज निकला ,

                 सोने के रथ पर बैठा।

                  इधर चला फिर उधर चला,

                  धूप खिली वह जिधर चला।

                 जादू है जी,जादू है!

     तारे कौन उगाता है,

     धरती कौन सजाता है!

     बादल कौन बनाता है,

     कोई नहीं बताता है।

     जादू है जी, जादू है!

                 देखो तुम इस जादू को,

                 परखो तुम इस जादू को।

                 जो भी इसे दिखाता है,

                 बदले में क्या पाता है?

                 जादू है जी, जादू है

                 कोयल

     देखो कोयल काली है, पर मीठी है इसकी बोली,

     इसने ही तो कूक-कूककर,आमों में मिश्री घोली।

     कोयल !कोयल !सच बताओ ,

     क्या संदेशा लाई हो!

     बहुत दिनों के बाद आज फिर,

     इस डाली पर आई हो ।

        क्या गाती हो, किसे बुलाती,

        बतला दो कोयल रानी!

         प्यासी धरती देख मांँगती,

         हो क्या मेघों  से पानी?

     कोयल! यह मिठास क्या तुमने

     अपनी मांँ से पाई है?

     मांँ ने ही क्या तुमको मीठी

     बोली यह सिखलाई है?

           डाल डाल पर उड़ना, गाना,

           जिसने तुम्हें सिखाया है,

          सबसे मीठे-मीठे बोलो,

           यह भी तुम्हें बताया है।

     बहुत भली हो, तुमने मांँ की बात सदा मानी है,

     इसलिए तो कहलाती हो, तुम सब चिड़ियों की रानी।

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                  प्रभु विनती

    मैं ढूंढता तुझे था, जब कुंज और वनों में।

    तू खोजता मुझे था, तब दीन के वतन में ।।

        तू आह बनकर किसी की, मुझको पुकारता      था। मैं था तुझे बुलाता, संगीत में भजन में।

    मेरे लिए खड़ा था, दुखियों के द्वार पर तू। 

    मैं बाट जोहता था, तेरी किसी चमन में।।

        तू बीच में खड़ा था, बेबस गिरे हुओं के।

         मैं स्वर्ग देखता था, झुकता कहांँ चरण में।

    तू रूप है किरण में, सौंदर्य है सुमन में,

    तू प्राण है पवन में, विस्तार है गगन में।।

      तू ज्ञान हिंदुओं में ईमान मुस्लिमों में।

     विश्वास क्रिश्चियन में ,तू सत्य है सूजन में ।।

    दुख में न हार मानूँ,सुख में तुझे न भूलूँ ।

    ऐसा प्रभाव भर दे, मेरे अधीर मन में।।

    हे दीनबंधु! ऐसी प्रतिभा प्रदान कर तू।

    देखूंँ तुझे दुर्गों में, मन में तथा वचन में।।

             वह चिड़िया जो

     वह चिड़िया जो

                चोंच मारकर 

    दूध भरे जुंडी के दाने 

    रुचि से रस खा लेती है,

    वह छोटी संतोषी चिड़िया 

    नीले पंखों वाली मैं हूंँ। 

    मुझे आने से बहुत प्यार है।

    वह चिड़िया जो 

    कंठ खोलकर 

    बूढे व़न-बाबा की खातिर 

    रस उड़ेल कर गा लेती है,

    वह छोटी मुंँह बोली चिड़िया

    नीले पंखों वाली मैं हूंँ

    मुझे विजान से बहुत प्यार है।

       वह चिड़िया जो 

    चोंच मारकर

    चढ़ी नदी का दिल टटोलकर

    जल का मोती ले जाती है,

    छोटी गरविली चिड़िया 

    नीले पंखोंवाली मैं हूंँ,

    मुझे नदी से बहुत प्यार है

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              साथी हाथ बढ़ाना

     साथी हाथ बढ़ाना ,

    तन-मन-धन से खुश होकर।

     उसको जो भी काम पड़े तुमसे,

     करो उसे पूरा ,हंसँकर ।

    खाना हो जब पास तुम्हारे,

     उसे खिलाकर तुम खाओ।

     फल ,मेवे हों या हो मिठाई,

     आपस में मिलकर खाओ ,

    बोझ उठाता हो जब साथी,

     तुम भी उसके लिए हाथ बढ़ाना।

     पड़ जाए बीमार अगर वह,

     सेवा उसकी सदा करना,

     साथी भी हर एक काम में,

     हंँसकर हाथ बँटाएगा।

     काम पड़ेगा कभी तुम्हें तो,

     पूरा कर दिखालाएगा।

            मिट्ठू जी

     मिट्ठू जी, ओ मिट्ठू जी!

     पिंजरे में क्यों रोते हो?

     आप पाठशाला कभी न जाते,

     टीचर जी की डांँट न खाते।

                  आपको मैं रोज नहाना पड़ता ,

                   न ठीक समय पर खाना पड़ता।

                   अपनी मर्जी से जगते हो,

                   जब इच्छा हो  सोते हो। 

    बोलो ,फिर क्यों रोते हो जी?

    आपको न पापा मार लगाते ,

    आपके न ही कड़वी दवा पिलाते।

    आपको न मम्मी आंँख दिखाती,

    आपको न हीं दीदी कभी चढ़ाती।

              खूब उछलते, खूब कूदते,

              कभी नहीं चुप होते जी।

               बोलो फिर क्यों रोते हो जी?

    आओ, आप बाहर आ जाओ,

     मुझ जैसा बच्चा बन जाओ।

     सबसे मेरे लिए झगड़ना,

     पर दादी से नहीं बिगड़ना।

               आप ही मेरी बूढ़ी दादी

               के बन जाओ पोते जी,

              अब बोलो क्यों रोते हो जी?

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           भारत का नीम

     न मैं डॉक्टर, न मैं ओझा,

     न मैं वैद्य-हकीम।

     मैं तो केवल एक पेड़ हूंँ,

    सदाबहार भारत का नीम ।

    यह है मेरे फूल निबौरी,

     इनको तुम घर ले जाओ।

     बीमारी कोई पेट की,

     इनसे तुम दूर भगाओ ।

    नीम-निंबौरी की गुठली से,

     कुछ ऐसा तेल बनाएँ।

     उसी तेल के साबुन से,

     हम फोड़े फुंँसी दूर भगाएँ। 

    मेरी सूखी पत्ती डालो,

     ऊनी कपड़े नाज बचा लो।

     सूखी पत्ती के धुएँ से,

     मक्खी-मच्छर दूर भगा लो।

     नहीं काटना मुझको तुम,

     मैं इतने सुख देता हूंँ। 

    सूरज की किरणों से मिलकर,

     हवा शुद्ध कर देता हूंँ। 

    जब तक सूरज चांँद

     और धरती की चले कहानी।

     तब तक दुनिया की खातिर,

     जीने की मैंने ठानी ।

    घर आंँगन में सड़क किनारे,

     नीम लगाओ मिलकर सारे।

     दुनिया भर में फैला नीम ,

    सदाबहार भारत का नीम।

           घर है हमारा प्यारा

     सदा यही तो कहती हो माँ ,

    घर यह सिर्फ़ हमारा प्यारा।

     लेकिन मांँ कैसे मैं मानूंँ,

     घर तो यह कितनों का प्यारा।

                   देखो तो कैसे ये चूहे, 

                    खेल रहे हैं पकड़म-पकड़ी।

                    देखो कैसे मच्छर टहल रहे हैं,

                     देखो कैसे मस्त पड़ी है मकड़ी।

     और छिपकली को तो देखो,

     चलती है जो गश्त लगाती।

     अरे देखो कतारें बांँधे-बांधे, 

    कहांँ चीटियांँ दौड़ी जाती।

                      और उधर देखो आंँगन में,

                       सब पक्षी कैसे झपट रहे।

                       बिल्कुल दीदी और मुझ जैसे,

                        किसी बात पर झगड़ रहे।

     और यह देखो कॉकरोच भी,

     दिन-रात क्या यही न रहते।

     क्यों रहते ये इस घर में,

     इसे ये अपना प्यारा घर समझते।

                      इसीलिए तो कहता हूंँ माँ,

                      घर न समझो सिर्फ़ हमारा प्यारा,

                       हमेशा से जो भी रहता इसमें,

                       सब का ही है घर है या प्यारा।

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              समय का मूल्य

     चला गया जो समय, लौट कर कभी नहीं फिर आता,

    सदा समय को खोने वाला, कर मल-मल पछताता।

    जिसने इसे न माना, उसको इसने भी ठुकराया, 

    लाख यत्न करने पर भी हाथ न उसके आया।

    हो जाता है एक घड़ी के लिए जन्मभर रोना,

     समय बहुत ही मूल्यवान है, व्यर्थ कभी मत

     खोना।


    धन खो जाता, श्रम करने से फिर मनुष्य है पाता,

    स्वास्थ्य बिगड़ जाने पर उपचारों से है बन जाता।

    विद्या खो जाती, फिर भी पढ़ने से है आ जाती

    लेकिन खो जाने से मिलती नहीं समय की थाती।

    जीवन भर भटको ,छानो दुनिया का कोना-कोना,

    समय बहुत ही मूल्यवान है, व्यर्थ कभी मत खोना

    रहती थी बापू की कटी में,, हरदम घड़ी लटकती,

     उन्हें एक क्षण की बर्बादी थी, अत्याधिक खटकती।

    बच्चों तुम भी उसी भांति पल-पल से लाभ उठाओ,

     व्यर्थ न जाए कभी एक क्षण भी ऐसा नियम बनाओ।

     गांँठ बांँध लो नहीं पड़ेगा, कभी तुम्हें दुख ढोना,

    समय बहुत ही मूल्यवान है, व्यर्थ कभी मत खोना।

    Hindi Language

                 वृक्ष

     वृक्ष बहुत ही कल्याणकारी है,

     आओ हम सब मिलकर वृक्ष लगाएंँ। 

    प्राणदायिनी वायु ,फल, फूल, औषधियां

    हम बदले में पाएंँ। 

                 पर्यावरण स्वच्छ रखते, 

                 मेघ बुलाकर वर्षा करवाते।

                  छाया देकर धूप और गर्मी से

                  हम सब को वृक्ष बचाते।

     अपनी जड़ ,तने और पत्तियों से

     जरूरत करते रहते सब की पूरी

     सरल बनाते सबका जीवन 

    होते वृक्ष जरूरी।

                 वृक्षों के इन उपकारों को 

                 हम अपने हृदय में संँजोएँँ ।

                 आओ रक्षा करें वनों की।

                 आओ हमसब मिलकर वृक्ष लगाएंँ।

                  सुबह

     सूरज की किरणें आती हैं,

     सारी कलियांँ खिल जाती है,

     अंधकार सब खो जाता है,

     सब जग सुंदर हो जाता है।

                   चिड़िया गाती हैं मिलजुल कर,

                   बहते हैं उनके मीठे स्वर,

                   ठंडी ठंडी हवा सुहानी,

                   चलती है जैसे मस्तानी।

    यह प्रातः की सुख-बेला है,

    धरती का सुख अलबेला है,

    नई ताजगी, नई कहानी,

    नया जोश पाते हैं प्राणी।

              खो देते हैं आलस सारा ,

             और काम लगता है प्यारा,

             सुबह भली लगती है उनको,

             मेहनत प्यारी लगती जिनको।

    मेहनत सबसे अच्छा गुण है,

    आलस बहुत बड़ा दुर्गन है,

    अगर सुबह भी अलसा जाए,

    तो क्या जग सुंदर हो पाए।

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                बरगद सा पिता

     बरगद के तरु जैसा बापू, तेरा संघना साया,

     मैं हूंँ तेरी प्यारी लाडो ,तू मेरा सरमाया ।

    बाँहों के झूले में लेकर तूने लाड लड़ाए,

    लालन-पालन में अम्मा संग, तूने हाथ बँटाए।

    हम आपस में भाई-बहन जब नोक-झोंक थे करते ,

    तेरी लोक अदालत में, तब सही फैसले होते।

    आदर, संयम, प्रेम प्यार का तूने पाठ पढ़ाया,

    कभी प्यार से ,कभी डाँट से जीना हमें सिखाया।

    बरगद के पत्तों-सम तेरे हाथ है रक्षा करते,

    देते-देते बेटियों को हाथ कभी न थकते।

    बरगद बापू तेरी दाढ़ी की, सौगंध मैं खाऊंँ,

    दाग न लगने दूंँगी इसको, हरदम लाज बचाओ

    बरगद-सी ठंडी छाया को, सदा-सदा हम पाएँ।

    तेरे शुभ संस्कारों से, जीवन सफल बनाएंँ।

            मैं भी पढ़ने जाऊंगी

     बापू मम्मी, काका काकी,

     मैं भी नाम कमाऊंँगी ।

    लेकर बस्ता-पोथी तख्ती,

    मैं भी पढ़ने जाऊंँगी।।

             चूल्हा ,चौका और सफाई 

            चाहे करवाना मुझसे ।

            गोहा, कूड़ा, झूठे बर्तन

            चाहे मंजवाना मुझसे।।

    पर वीरे की तरह मुझे भी,

    बस ले देना एक बस्ता।

    चंद किताबें और कापियांँ

    एक स्लेट एक बस्ता।।

             देखना इक दिन बापू तेरी,

             वीरो कुछ बन जाएगी।

             विद्या धन को अर्चित करके,

             अफसर बनकर आएगी।

     छोड़ दे बोतल बापू मेरे,

     नशा तो एक तबाही है ।

    इसमें अपने घर आंँगन की ,

    कितनी खुशियांँ खाई है ।

            पलंग-पालने ,बिस्तर, कपड़े,

           और गहने न बनवाना,

           विद्याधन ही असली गहना,

           बस मुझको यह पहनाना।।

    बनकर टीचर ,डॉक्टर इक दिन ,

    अपना फर्ज निभाऊंँगी।

    जीवन सफल बनेगा मेरा

     तेरे सदके जाऊंँगी।

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               जीवन का लक्ष्य

     बच्चों, पहले अपने जीवन का लक्ष्य बनाओ, फिर उसे पाने के लिए जुट जाओ।

     बाधाएंँ बहुत आएगी,

     तुम्हें बहुत डराएंगी ,

    लक्ष्य से न नजर हटाना।

    आगे कदम बढ़ाते जाना।

         अर्जुन ने चिड़िया की आंँख को लक्ष्य बनाया, तभी आँख-भेदन कर पाया।

    एकलव्य ने मिट्टी की प्रतिमा को गुरु बनाया, तभी वीर धनुध्रर बन पाया।

    महात्मा बुद्ध ने दया प्रेम को अपनाया,

    और यही संदेशा लोगों में पहुंँचाया।

    मदर टेरेसा ने समाज सेवा को लक्ष्य बनाया,

    और जीवन सारा दुखियों में लगाया। 

     बच्चों, पहले अपने जीवन का लक्ष्य बनाओ।

     फिर उसे पाने के लिए जुट जाओ।

     बाधाएंँ बहुत आएंँगी। 

    तुम्हें बहुत डरायेंगी,

    लक्ष्य से न नज़र हटाना।

    आगे कदम बढ़ाते जाना।

    कल्पना चावला ने अंतरिक्ष उड़ान को लक्ष्य बनाया।

    विश्व में भारत का मस्तक ऊंँचा उठाया।

    सचिन ने क्रिकेट को मंजिल बनाया,

    जगत में राष्ट्र का नाम चमकाया।

    अभिनव बिंद्रा ने निशानेबाजी को अपनाया।

    और ओलंपिक में भारत को स्वर्ण पदक दिलाया ।

    बचेंद्री पाल ने पर्वतारोहण को लक्ष्य बनाया।

    और एवरेस्ट की चोटी पर पहुंँचने वाली

     प्रथम भारतीय महिला का खिताब पाया।

     बच्चों ,पहले अपने जीवन का लक्ष्य बनाओ।

     फिर उसे पाने के लिए जुट जाओ,

     बाधाएंँ बहुत आएगी,

     तुम्हें बहुत डरायेंगी,

     लक्ष्य से न नजर हटाना।

     आगे कदम बढ़ाते जाना

               भाषा की रेल

     हंँसी खुशी की है अभिलाषा,

     पढ़े-लिखे ,सीखेंगे भाषा।

     भाषा में है खेल-खिलौने, 

    जादूगर ,सर्कस के बौने।

     कथा-कहानी और पहेली,

     संगी-साथी सखी-सहेली।

     भाषा की हम रेल चलाएंँ। 

    गीत खुशी के हिल-मिल गाएँ।

             छुक छुक

     आओ भाई, खेलें खेल,

     चलती है अब अपनी रेल ।

    हम इंजन है भक-भक करते,

    हम डिब्बे हैं छक- छक करते,

            सीटी देती अपनी रेल,

            कैसा बढ़िया है यह खेल!

            दिल्ली जाने वाले हैं आएँ,

             तनिक देर में हम पहुंँचाएंँ,

     चाहे तो हम इसी रेल में 

    झटपट कलकत्ता हो आएँ।

    टिकट-विकट का काम नहीं है, 

    लगता कुछ भी दाम नहीं है।

               स्टेशन पर रुक गई रेल।

              हुआ खत्म अब अपना खेल।

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             गुब्बारे

     रंग-बिरंगे  ये गुब्बारे,

     लगते कितने प्यारे-प्यारे!

     दिखते हैं यह बड़े मनोहर,

     जैसे नभ के चांँद सितारे।

            हवा भरो, खिल जाते जैसे,

             चुम्मी पाकर बच्चे सारे।

     इनके आगे बौने लगते,

     खेल खिलौने सभी हमारे।

     सिर्फ एक तो गुब्बारा है,

     और अधिक तो हैं गुब्बारे।

            कुदरत

     चिड़ियों से चह-चह चहकें हम 

             फूलों से मुस्काएँ,

     रंग बिरंगी तितली -से 

           सपनों के पर फैलाएँ। 

    सरिता से सीखे बहना,

            पेड़ों से प्यार लुटाना,

    शीतल चंदा से सीखें

            सबको चम-चम चमकाना।

     नाम कुछ और काम कुछ और

     सुंदर गोरे चेहरेवाली 

    दीदी को सब कहते 'काली'

     काला अक्षर भैंस बराबर,

     नाम है उनका विद्यासागर!

     दौलतराम करें मजदूरी,

     मजदूरी पड़ती न पूरी!

     कौड़ीमल है पूंँजीवाले,

     नामों के खेल निराले!

     स्त्रीलिंग और पुल्लिंग

     पापा जी की दाढ़ी, मूँछ,

     कुत्ते बंदर की दुम, पूँछ।

     जीभ, नाक, आंँखें लो गिन,

     यह सब होंगी स्त्रीलिंग।

     हाथ, पैर, सिर, कान औ' केश,

     घर, परिवार ,गांँव औ'देश,

     मौसम, पर्व ,महीना, दिन 

    कहलाते हैं यह पुलिंग।

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     अगर न नभ में बादल होते

     कौन सिंधु से जल भर लाता,

     उमड़ घुमड़ जग में बरसाता,

     गर्मी में तप-खप दिन खोते 

    अगर न नभ में बादल होते?

     कभी न बिजली चमक दिखाती,

     दुनिया में क्या दमक दिखाती ?

    कभी न बहते झरने-सोते

    अगर न नभ में बादल होते?

          मोर न खुश हो शोर मचाते,

          मेंढक कभी न टर-टर्राते।

           प्यासे मरते चिड़िया-तोते

           अगर न नभ में बादल होते?

    सुखी होती नदियांँ-नहरें 

    होती कहीं न सुंदर लहरे। 

    कहांँ नहाते, खाते गोते 

    अगर न नभ में बादल होते?

                शहीद

     फिर वही कहलाते हैं 

    जो काम देश के आते हैं।

     जान देश पर लुटा गए,

     वे भारत को रूशना (महका)गए ,

    रक्त के कतरे-कतरे से

    इतिहास नया रस जाते हैं।।

             शहीद वही कहलाते

      लाडी मौत से शगन कराया 

    सेहरे वाला सर कटवाया।

    भारत मांँ की रक्षा हेतु,

     बंद -बंद कटवाते हैं।।

              शहीद वही कहलाते हैं

     देश प्रेम का पाठ पढ़ा गए,

     आजादी का चमन खिला गए। 

    सरफरोशी के नगमों को,

     फांँसी चढ़ते गाते हैं।।

               शहीद वही कहलाते हैं।

    Hindi Language



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