Small Hindi Essay To Learn Hindi Language
भालू ने खेली फुटबॉल
सर्दियों का मौसम था। सुबह का वक्त। चारों और कोहरा ही कोहरा। एक शेर का बच्चा सिमटकर गोल-मटोल बना जामुन के पेड़ के नीचे सोया हुआ था।
इधर भालू साहब सैर पर निकल तो आए थे लेकिन पछता रहे थे। तभी उनकी नजर जामुन के पेड़ के नीचे पड़ी।
आंँखें फैलाई, अकल दौड़ाई- अहा फुटबॉल। सोचा, चलो इससे खेल कर कुछ गर्मी हासिल की जाए।
आव देखा न ताव। भालू जी ने पैर से उछाल दिया शेर के बच्चे को। हड़बड़ी में शेर का बच्चा दहाड़ा और फिर पेड़ की एक डाल पकड़ ली।
मगर डाल टूट गई भालू साहब जल्दी ही मामला समझ गए। पछताए, लेकिन अगले ही पल दौड़कर फुर्ती से दोनों हाथ बढ़ाएं और शेर के बच्चे को लपक लिया।
अरे यह क्या! शेर का बच्चा फिर से उछालने के लिए कह रहा था।
एक बार फिर भालू दादा ने उछाला।
दो बार...
तीन बार...
फिर बार-बार यही होने लगा।
शेर के बच्चे को उछलने में मजा आ रहा था। परंतु भालू थककर परेशान हो गया था।
ओह,किस आफत में आ फँसा।बारहवीं बार उछालते ही भालू घर की ओर दौड़ लगाई और गायब हो गया।
अब की बार शेर का बच्चा धड़ाम से जमीन पर आ गया।डाल भी टूट गई।
तभी माली वहांँ आया और शेर के बच्चे पर बरस पड़ा-
डाल तोड़ दी पेड़ की। लाओ हर्जाना।
शेर के बच्चे ने कहा- जरा ठीक तो हो लूँ।
माली ने कहा ठीक है।
मैं अभी आता हूंँ।
माली के वहांँ से जाते ही शेर का बच्चा भी नौ दो ग्यारह हो लिया। उसने सोचा-
जान बची तो लाखों पाए।
अपना घर है सबको प्यारा
एक दिन मैं (मिनी) सड़क पर जा रही थी। मैंने वहां एक मेंढक देखा मैंने उसे पकड़ लिया। मैं उसे अपने साथ ले आई। मैंने उसे पिंजरे में डाल दिया। मेंढक टर-टर करने लगा। मेंढक पिंजरे के अंदर फुदकने लगा। मैं पिंजरे के ऊपर बैठ गई।
मैं बाग में घूम रही थी। तभी मैंने एक रंग बिरंगी तितली को देखा। मैं उसके पीछे भागी। तितली कभी इस फूल पर तो कभी उस फूल पर बैठती। जाली फेंकने से पहले ही वह उड़ जाती थी। आखिर मैंने उसे पकड़ ही लिया। मैंने उसे पिंजरे में डाल दिया। मैं बगीचे में खेल रही थी। मैंने वहां एक गिलहरी के बच्चे को देखा। मैंने उसे पकड़ लिया। मैं उसे अपने साथ ले आई। मैंने उसे पिंजरे में डाल दिया। मेरा पालतू कुत्ता उसे देखने लगा।
पिंजरे में बंद उन सब को देख कर मुझे लगा कि वह सब उदास हैं। वह अपने घर जाना चाहते हैं। मैं कुछ देर तक बैठी सोचती रही अगर कोई मुझे पिंजरे में बंद कर दे। तो मैंने उन सब को पिंजरे से आजाद कर दिया। अब सब बहुत प्रसन्न थे।
शिक्षा- पशु पक्षियों को कभी भी पिंजरे में बंद नहीं करना चाहिए।
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आसमान गिरा
एक दिन छोटा चूज़ा आम के पेड़ के नीचे लेटा हुआ था। तभी आसमान में कुछ बादल की आए।तेज हवा चलने लगी। बिजली कड़की और उसी के साथ चूजे़ के सिर पर कुछ गिरा।चूजे़ ने चौक पर ऊपर देखा। चूजा़ घबरा गया और तेजी से भागने लगा। भागते- भागते हुए चिल्ला रहा था, "भागो,भागो। आसमान गिर रहा है।" चूहे ने चूज़े को तेजी से भागते देखा। उसने पूछा,"क्या बात है? क्यों भाग रहे हो?" चूज़ा बोला, भागो, भागो। आसमान गिर रहा है।"
चूहा यह सुनकर घबरा गया। वह भी"भागो ,भागो चिल्लाते हुए चूज़े के पीछे भागने लगा। आगे जाने पर एक खरगोश मिला। खरगोश ने जब यह सुना, तो वह भी घबरा कर भागने लगा। अब आगे चूज़ा था, पीछे चूहा, फिर खरगोश।
तभी उधर से एक लोमड़ी गुजरी। उसने उन्हें भागते हुए देख उसने पूछा ,"क्या हुआ मित्रों? क्यों भाग रहे हो?" खरगोश बोला, "भागो ,भागो। आसमान गिर रहा है। जान बचाकर भागो।" लोमड़ी यह सुनकर घबरा गई और वह भी तीनों के पीछे भागने लगी ।अब चारों चिल्लाते हुए भाग रहे थे। तभी एक हाथी ने देखा कि चूज़ा ,चूहा, खरगोश और लोमड़ी चारों तेजी से भाग रहे हैं। उन्हें भागते देखा फिर वह भी घबरा गया। वह भी उनके पीछे-पीछे भागने लगा। भागते- भागते एक गुफा के सामने शेर मिला। उसने पूछा ,"क्या हुआ कहां भागे जा रहे हो?"
चूज़ा बोला ,"महाराज आसमान टूट कर गिर रहा है ।मेरे ऊपर भी एक टुकड़ा आकर गिरा।" शेर ने हैरानी से कहा," क्या कभी आसमान भी गिरता है?" फिर उसने चारों की तरफ देखकर पूछा," क्यों और किसी ने आसमान को गिरते हुए देखा है?" चूहा खरगोश ,लोमड़ी व हाथी ने न में सिर हिलाया। चूज़ा बोला ,"पर मेरे सिर पर आसमान का एक टुकड़ा टूट कर गिरा था।" शेर ने कहा, "अच्छा, हमें वहां ले चलो। मैं वह टुकड़ा देखना चाहता हूंँ।"
चूज़े के साथ सब आम के पेड़ के नीचे पहुंँचे। वहां केवल एक आम ही पड़ा था। उसे देखकर शेर जोर से हंँसा और बोला," वह आसमान नहीं था। वह यही आम था।" फिर से ने उन्हें डांँटते हुए कहा," तुम लोगों ने भी बिना देखे मान लिया कि आसमान गिर रहा है।" अब पाँचों पशु मुंँह लटकाए खड़े थे।
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मेरी उड़ान मेरी पहचान
हवाई जहाज नीले व सफेद रंग का एक खिलौना है। इसके आस-पास दो चमकदार पंख हैं। इस पर एक नीली बत्ती लगी हुई है ।चलते समय यह बोलता है," मेरी उड़ान मेरी पहचान।"
खिलौनों की दुकान में हवाई जहाज को देखकर पुलकित उसे पाने के लिए मचल उठा। पुलकित ज़िद सुनकर हवाई जहाज बहुत खुश हुआ। उसे खुद पर गर्व महसूस होने लगा ।माँ ने पुलकित को हवाईजहाज़ खरूदकर दिया। पुलकित ने मांँ को धन्यवाद दिया और घर जाकर खेलने लगा। बाद में उसने उसे अपने खिलौनों के कमरे में रख दिया।
वहांँ रखा टैडी, भालू, हवाईजहाज़ को देख कर मुस्कुराया। वह बोला," तुम्हारा स्वागत है ,हवाई जहाज भैया!" पर हवाईजहाज़ ने कुछ उत्तर नहीं दिया ।तभी मीशु गुड़िया बोली," क्या तुम हमें अपनी सवारी करवाओगे?"हवाई जहाज अब भी चुप रहा।
उसने अन्य खिलौने से मित्रता करने की कोई कोशिश नहीं की। खिलौने आपस में फुसफुसाने लगे ,"यह हवाई जहाज बहुत घमंडी है। खुद को हम सबसे ज्यादा सुंदर समझता है। हमारी छुककू रेल गाड़ी को देखो वह कितनी अच्छी है। हमें रोज सवारी करवाती है।"
एक शाम पुलकित के चाचा के बच्चे रोहित व कनिका उनके घर खेलने आए। उन्होंने कई बार हवाई जहाज को उड़ाया । वह बहुत थक गया। उड़ते-उड़ते वह दूसरे कमरे के पलंग के नीचे जा गिरा । गिरने के कारण से हवाई जहाज के चमकदार पंख निकल कर गिर गए। उसके शरीर पर बहुत सी खरोचें आ गई बत्ती टूट गई। रोहित वे कनिका के जाने के बाद पुलकित घर आकर सो गया।
इधर बिगों हाथी को हवाईजहाज की बहुत चिंता हो रही थी। वह बोला," हवाई जहाज वापस नहीं आया है हमें उसे ढूंढना चाहिए।" बिंगो की बात सुनकर टुकटुक कुत्ता बोला," हमें क्या जरूरत है, उसे ढूंढने की? वह तो हमसे बात भी नहीं करता था।"
" टुकटुक तुम्हारी बात सही है, पर इस समय मुसीबत में हमें उसकी मदद करनी चाहिए",मीशू गुड़िया ने समझाया। सभी खिलौने मान गए। वे सभी छुककू रेलगाड़ी में बैठकर उसे ढूंढने लगे। अचानक उन्हें पलंग के नीचे से हवाई जहाज के सूबकने की आवाज सुनाई दी।वे हवाईजहाज को उठाकर वापिस खिलौनों के कमरे में ले आए।
सबने मिलकर उसकी धूल झाड़ी। उन्होंने उसकी बत्ती फिर से लगा दी। खरोचें हटाने के लिए उस पर नीला और सफेद रंग कर दिया।वह फिर से बहुत सुंदर दिखने लगा।
हवाई जहाज की आंँखों में आंँसू आ गए ।उसने सब से माफी मांगी और सब को अपना मित्र बना लिया। उसने अपनी सवारी करवाई अब वे सब हमेशा मिलजुल कर प्यार से रहने लगे।
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तीन मूर्ख
एक बार बादशाह अकबर ने बीरबल को आदेश दिया कि राज्य से तीन महामूर्ख ढूंढ कर लाओ ।राजा की आज्ञा मानकर बीरबल चले गए। वे कुछ दूर ही गए थे कि एक घुड़सवार मिला। वह घोड़े पर बैठा चला आ रहा। उसके सिर पर लकड़ियों का गट्ठर था। बीरबल ने पूछा," अरे यह गट्ठर सिर पर क्यों रखा है ?घोड़े पर क्यों नहीं रखते?" वह आदमी बड़ी मासूमियत से बोला," घोड़ा बहुत कमजोर है ,दीवान जी! मेरा ही वजन यह नहीं संभाल पा रहा है। अगर गट्ठर का वजन भी इसी पर रख दूंँगा, तो यह बेचारा मर ही जाएगा।" बीरबल ने घोड़े का लालच देकर उस मूर्ख को अपने साथ ले आए।
रात होने पर उन्होंने देखा एक आदमी दीवार पर लगी लालटेन की रोशनी में कुछ ढूंढ रहा है। बीरबल ने उस आदमी से पूछा," क्या ढूंढ रहे हो?" वह बोला," मेरा एक सिक्का खो गया है।" "सिक्का कहां खोया था?," बीरबल ने पूछा," वहां उस वृक्ष के नीचे", आदमी ने इशारा करते हुए कहा।
बीरबल ने आश्चर्य से पूछा," तो वहांँ क्यों नहीं ढूंढते ?"
"अरे दीवान जी ,वहांँ अँधेरा है इसलिए यहांँ लालटेन के उजाले में सिक्का ढूंढ रहा हूंँ। "आदमी से सहज सवर में बोला।
बीरबल समझ गए कि यह तो मूर्खों का भी मूर्ख है। वे उसे जयादा सिक्के देने का लालच देकर अपने साथ ले आए। फिर बीरबल उन दोनों को लेकर उसी समय बादशाह अकबर के पास पहुंचे और उनके कारनामे बताएं। बादशाह बोले ,यह तो सिर्फ दो ही हैं, लेकिन हमने तो तीन मूर्ख लाने को कहा था।"
" जहांँपना बाकी एक मूर्ख भी यही है", बीरबल ने कहा ।बादशाह चौक कर इधर-उधर देखने लगे ,पर उन्हें कोई नहीं दिखा। वे बोले,"अरे बीरबल तीसरा मूर्ख कहां है?"
बीरबल ने झुककर कहा," गुस्ताखी माफ हो जहांँपना !तीसरा मूर्ख में हूंँ, जो ऐसा फालतू काम कर रहा हूँ।"
बीरबल की बात सुनकर बादशाह अकबर खिलखिला कर हंँस पड़े। फिर उन्होंने दोनों मूर्खों को इनाम देकर भेज दिया और बीरबल की हाज़िरजवाबी देखकर उन्हें भी उपहार दिया।
अधिक बलवान कौन
एक बार हवा और सूरज में बहस छिड़ गई। हवा नहीं सूरज से कहा- मैं तुम से अधिक बलवान हूंँ। सूरज ने हवा से कहा- मुझसे तुमसे ज्यादा ताकत है।
इतने में हवा की नजर एक आदमी पर पड़ी। हवा ने कहा- इस तरह बहस करने से कोई फायदा नहीं है। जो इस आदमी का कोट उतरवा दे, वहीं ज्यादा बलवान है।
सूरज हवा की बात मान गया। उसने कहा- ठीक है दिखाओ अपनी ताकत।
हवा ने अपनी ताकत दिखानी शुरू की।
आदमी की टोपी उड़ गई पर कोर्ट उसने अपने दोनों हाथों से शरीर से लिपटे रखा और जल्दी-जल्दी कोर्ट के बटन बंद कर लिए ।
हवा और जोर से चलने लगी। अंत में आदमी नीचे ही गिर पड़ा। पर कोर्ट उसके शरीर पर ही रहा। अब हवा थक गई थी सूरज ने कहा -हवा अब तुम मेरी ताकत देखो। सूरज तपने लगा।
आदमी ने कोर्ट के बटन खोल दिए। सूरज की गर्मी और बड़ी आदमी ने कोर्ट उतार दिया और उसे हाथ में लेकर चलने लगा। सूरज ने कहा -देखी मेरी ताकत ?उतरवा दिया न कोर्ट? हवा ने सूरज को नमस्कार किया और कहा मान गई तुम्हारी ताकत को।
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दोस्त की मदद
किसी तालाब में एक कछुआ रहता था। तालाब के पास माँद में रहने वाली एक लोमड़ी से उसकी दोस्ती हो गई। एक दिन वह तालाब के किनारे गपशप कर रहे थे कि एक तेंदुआ वहांँ आया ।दोनों अपने अपने घर की ओर जान बचाकर भागे ।लोमड़ी तो सरपट दौड़कर अपनी माँद में पहुंच गई पर कछुआ अपनी धीमी चाल के कारण तालाब तक नहीं पहुंँच सका। तेंदुआ एक छलांँग में उस तक पहुंच गया।
कछुए को कहीं छुपने का भी मौका न मिला। तेंदुए ने कछुए को मुंँह में पकड़ा और उसे खाने के लिए एक पेड़ के नीचे चला गया लेकिन दांँतों और नाखूनों का पूरा जोर लगाने पर भी कछुए के सख्त खोल पर खरोच तक नहीं आई ।लोमड़ी अपनी मांँद से यह देख रही थी ।उसने कछुए को बचाने की तरकीब सोची। उसने मांँद से झांककर बाहर देखा और भोलेपन के साथ बोली- तेंदुए जी, कछुए के खोल को तोड़ने का मैं आसान तरीका बताती हूंँ। इसे पानी में फेंक दो। थोड़ी देर में पानी से इसका खोल नरम हो जाएगा ।चाहो तो आजमा कर देख लो।
तेंदुए ने कहा -ठीक है, अभी देख लेता हूंँ! यह कहकर उसने कछुए को पानी में फेंक दिया। बस फिर क्या था, गया कछुआ पानी में!
मेरी किताब
मांँ ने वीरू को एक संदेश लेकर अपनी बहन के पास भेजा। मौसी ने प्यार से वीरू को अंदर बुलाया और बैठक में ले गई। बैठक में कदम रखते ही वीरू अचरज से ठिठक गई ।उसने सोचा- बाप रे !इतनी सारी किताबें !
वहांँ नीचे से ऊपर तक किताबों से भरे खानों वाली दो लंबी दीवारें थी? वह आंँखें फाड़े देखती रही।
अंत में उसने साहस करके पूछा -क्या आपके पास बच्चों के लिए भी किताबें हैं?
मौसी ने कहा- हांँ, यह देखो, यह वाला खाना और यह वाला। वीरू ने हैरानी से कहा- इतनी ढेर सारी किताबें! मेरे पास तो इतनी किताबें नहीं है।
मौसी ने कहा- यदि तुम चाहो तो मैं पढ़ने के लिए तुम्हें कुछ किताबें दे सकती हूंँ। तुम्हें किस तरह की किताबे सबसे अधिक पसंद है?
वीरू ने धीरे से कहा- मुझे मालूम नहीं। मौसी ने एक किताब निकाल कर वीरू को पकड़ाई और कहा -तुम यह किताब पढ़ कर देखो ।
वीरू घबराकर पीछे हटी और बोली- बाप रे! यह तो बहुत मोटी है ।मौसी ने सुझाव दिया -अच्छा, तो फिर शायद यह वाली ठीक रहेगी। वीरूबोली-यह बहुत बड़ी है ,मेरे बस्ते में नहीं आएगी। मौसी ने एक तीसरी किताब दिखाई और इसके बारे में क्या ख्याल है?
वीरू ने किताब के पन्ने पलटे और यह फैसला किया- इसमें पढ़ने के लिए बहुत कम है, इतनी छोटी-छोटी तस्वीरें! और यह किताब बहुत पतली है। मौसी ने कहा- वीरू मुझे तो लगता है कि मैं तुम्हारे लिए किताब नहीं चुन सकती। ऐसा करना, अगली बार जब तुम आओ तो अपने साथ एक फुटटा लेती आना।
वीरू ने पूछा-फुटटा क्यों? मौसी ने हंँसकर कहा -तुम्हें कितनी मोटी किताब चाहिए तुम नाप कर ले लेना ठीक है न!
वीरू ने माँ के भेजे हुए कागज को मेज पर रखा और भाग खड़ी हुई।
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खरगोश की पूँछ
जंगल में रहने वाले सभी पशुओं की पूंँछ बहुत सुंदर थी। चुनमुन बंदर की पूंँछ लंबी थी। चुटकी लोमड़ी की पूंछ भी लंबे और घने बालों वाली थी। चंपत चीते की भी धारीदार लंबी व सुंदर पूंँछ थी। बंकू को खरगोश चाहता था कि उसकी पूछ भी लंबी हो।
बंकू एक छोटा खरगोश था। उसके बहुत सुंदर सफेद रोएँ थे ।उसके दो खूबसूरत लंबे कान थे ।उसकी आंखें चमकदार थी। पर बंकू फिर भी खुश नहीं था। उसे अपनी पूंँछ बिल्कुल पसंद नहीं थी।
चुन्नू कौवे ने चुनमुन बंदर से कहा ,"चुनमुन चलो बंकू के लिए नई पूँछ का इंतजाम करते हैं ।"चलो', कहकर चुनमुन चुन्नू के साथ गांँव की ओर चला गया।
गांँव में उन्हें रस्सी का एक टुकड़ा मिला। उसे उठा कर ले आए। उन्होंने उसे बंकू की पूंँछ से बांध दिया। अब बंकू बहुत खुश था।
अब उसके पास लंबी पूंँछ जो थी। बंकू ने चुनमुन और चुन्नू को धन्यवाद दिया। वे अपनी लंबी पूंँछ हिलाता हुआ जंगल में इधर-उधर उछलने कूदने लगा। "ओह! यह क्या हुआ? मेरी पूँछ कहांँ फँस गई।- बंकू ने दर्द से चीखते हुए पीछे देखा। बंकू की पँछ झाड़ियों में उलझ गई थी ।उसे समझ नहीं आ रहा था, वह क्या करें ?वह रोने लगा।
वहीं पास में मिंटू चूहा रहता था ।उसने बंकू के रोने की आवाज सुनी। वह बिल से बाहर आया। बंकू की पूंछ झाड़ियों में फंसी देखकर मिंटू चूहे ने रस्सी कुतर दी। अब बंकू समझ गया कि उसकी छोटी पूँछ ही सबसे अच्छी है।
पहले मैं पहले मैं
रविवार का दिन था। सुहावना मौसम था। बच्चों ने क्रिकेट खेलने का मन बनाया। सोना और हीरा दो टीमें बन गई। दोनों टीमों के 11- 11 खिलाड़ी तय हो गए। दीपक अंकल अंपायर बनाए गए।
दोनों टीमें पहले बल्लेबाजी करने के लिए जिद करने लगी। उनमें झगड़ा होने लगा। अंपायर ने कहा," लड़ने की कोई बात नहीं है। हम सिक्का उछाल कर तय कर लेते हैं कि पहले बल्लेबाजी कौन करेगा। यह सिक्का देखो। इसके दो पहलू हैं।शेर वाला पहलू सोना टीम का है और अंक वाला पहलू हीरा टीम का है।"
दीपक अंकल ने सिक्के को उछाला अंक वाला पहलू ऊपर आया ।उन्होंने कहा पहले हीरा टीम बल्लेबाजी करेगी। अब दूसरी लड़ाई शुरू हुई। हीरा टीम का हर लड़का सबसे पहले बल्लेबाजी करना चाहता था। अंपायर बोले ,"11 लोग एक साथ बल्लेबाजी नहीं कर सकते हैं। तुम लोग बल्लेबाजी का कोई क्रम बना लो। मेरे पास एक तरीकी है।
उन्होंने कागज की 11 पर्चियां बनाई ।उन पर एक से 11 तक संख्या लिख दी ।फिर लड़कों ने कहा ,"सब एक-एक पर्ची उठा लो। जिसके पास जो संख्या आएगी। वही उसकी बारी होगी ।दीपक अंकल की सूझबूझ से पहले मैं पहले मैं की लड़ाई टल गई थी और सब बच्चों की बारी तय हो गई। क्रिकेट का खेल शुरू हो गया।
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बुलबुल
क्या तुमने कभी बुलबुल देखी है? बुलबुल को पहचानने का एक सरल तरीका है। यदि तुम्हें कोई चिड़िया तेज आवाज में बोलती हुई मिले तो उसकी पूँछ को देखो। यही पूँछ के नीचे वाली जगह लाल हो ।तो समझो, चिड़िया बुलबुल है।
जब उड़े तो पूँछ का सिरा भी ध्यान से देखना। बुलबुल की पूँछ के सिरे का रंग सफेद होता है ।उसका बाकी शरीर भूरा और सिर का रंग काला होता है।
बुलबुल ऊंँची आवाज में बोलती है। बुलबुल को हम लोगों से कोई डर नहीं लगता। तो मैं शायद एक बुलबुल ऐसी भी मिले जिसके सिर पर काले रंग की कलगी हो। उसे सिपाही बुलबुल कहते हैं।
बुलबुल पीपल या बरगद के पेड़ पर कीड़े ढूंढ कर खाती है। वह हमारी तरह सब्जी और फल भी खाती है ।अमरूद के बगीचे जब मटर के खेत पर बुलबुल काफी जोर से हमला करती है।
वह अपना घोंसला सूखी हुई घास और छोटे पौधों की पतली जड़ों से बनती है। घोंसला अंदर से एक सुंदर कटोरे जैसा दिखता है ।
एक बार में दो या तीन अंडे देती है। उसके अंडे हल्के गुलाबी रंग के होते हैं। तुम उन्हें ध्यान से देखो ।तो तुम्हें उन पर कुछ लाल कुछ भूर और कुछ बेंगली बिंदियाँ दिखाई देंगी।
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मीठी सारंगी
एक गांँव में एक सारंगी वाला आया। वह सारंगी बहुत अच्छी बजाता था। रात में जब उसने सारंगी बजाना शुरू किया तब गांँव के बहुत से लोग इकट्ठे हो गए। सारंगी की मीठी आवाज और सारंगी वाले की बजाने की कला से गांँव के लोग दंग रह गए ।सब लोग कहने लगे -क्या मीठी सारंगी है!
आह! कितना आनंद आ रहा है। वहीं पास में बैठा हुआ भोला भी लोगों की यह बातें सुन रहा था ।वह मन ही मन कहने लगा। इन लोगों को सारंगी बहुत मीठी लगी लेकिन मेरा तो मुंँह मीठा हुआ ही नहीं। यह सब झूठे हैं।
थोड़ी देर बाद उसने सोचा कि शायद सारंगी वाले के पास बैठने से मुंँह मीठा हो जाए। इसलिए वह सारंगी वाले के पास जाकर बैठ गया।
रात के तीन-चार बजे जब सारंगी वाले ने गाना बजाना बंद कर दिया। तब लोगों ने सारंगी वाले से कहा- महाराज! आपकी सुरंगी बहुत ही मीठी है। हमें बड़ा ही आनंद आया। दो-चार दिन यहीं ठहरिए।
ये बातें सुनकर बोला मन ही मन जो झुँझलाया और सोचने लगा यह लोग झूठ तो नहीं बोल सकते। सारंगी मीठी जरूर है पर मुझे न जाने स्वाद क्यों नहीं आया।
तब तक रात ज्यादा हो गई थी। इस कारण लोग घर नहीं गए ।वहीं चौपाल में सो गए। सारंगी वाले ने भी सारंगी पर खोली चढ़ाई और उसे अपने सिरहाने रख कर सो गया ।पर भोला को चैन कहा था? जब लोग नींद में खर्राटे लेने लगे ।तब उसने चुपके से वह उठकर सारंगी उठा ली और ऊपर का खोल उतारकर उसे जीभ से चाटा। कुछ स्वाद आया। अब उसने सुरंगी को खूब हिलाया उसके छेद को मुंँह के पास लगा कर मुंँह में उड़ेला पर सारंगी से एक भी मीठी बूँद नहीं निकली। वह लोगों की बेवकूफी पर बहुत ही झुँझलाया।अब की बार उसने सुरंगी को गांँव से बाहर दूर ले जा कर फेंक दिया। वे लोगों की बेवकूफी पर हंँसता हुआ अपनी जगह पर आकर चुपचाप सो गया ।
सवेरा होने पर जब सारंगी अपनी जगह पर नहीं मिली। तो सब लोग और सारंगी वाला बड़े दुखी हुए -लोग कहने लगे बड़ी मीठी सारंगी थी।पता नहीं कौन ले गया। भोला इस बात को न सुन सका और गुस्से से बोला -क्या खाक मीठी थी! मैंने तो उसे अच्छी तरह चाटा था उसमें जरा भी मिठास नहीं थी। तुम सब लोग झूठे हो। और बाबा जी की खुशामद करते हो।
लोगों ने पूछा- पर सारंगी है कहांँ? उसने कहा -गांँव के बाहर पड़ी है। लोगों ने भोला की बेवकूफी पर सिर पीट लिया।
टेसू
टेसू आए घर के द्वार
खोलो रानी चंदन किवार.....
बांँस की तीन खपपच्चियों को बीच से बांँधकर डमरू जैसे आकार में टेसू बनाया जाता है। इस आकृति के एक छोर की खपपच्चियों पर टेसू का सिर तथा हाथ मिट्टी से बनाए जाते हैं। जबकि दूसरे छोर पर तीन पैर बनाए जाते हैं। मिट्टी सूख जाने पर रंग से कान, नाक ,आंँख ,मुंँह तथा हाथ, पैरों की उंगलियां बनाई जाती हैं। हाथों पर या खपपच्चियों के जोड़ पर दिया जलाया जाता है। टेसू बाजार में बना हुआ भी मिलता है।
लोगों का टेसू के प्रति व्यवहार अलग- अलग होता है ।कुछ लोग अच्छी तरह स्वागत करते हैं। तो कुछ लोग दरवाजा ही नहीं खोलते। पर टेसू की फौज यानी लड़कों की टोली डटी रहती है ।टोली के सदस्य बारी-बारी से गीत गाते हैं। फिर भी अगर कोई दरवाजा न खोले तो अगले दिन आने का वादा करके आगे बढ़ जाते हैं। टेसू की फौज अधिक कुछ नहीं मांँगती- बस थोड़ा सा अनाज, पैसे या दीपक में जलाने के लिए तेल।
यह त्यौहार पाँच दिन तक चलता है।
टेसू एक प्रसिद्ध उत्सव और खेल है। यह दशहरे के दिनों में मनाया जाता है। इस त्यौहार में लड़कों के टोली टेसू लेकर घर-घर जाती है और गीत है।
टेसू आए घर के द्वार
खोलो रानी चंदन किवार...
बस के नीचे बाघ
किसी जंगल में एक छोटा बाघ रहा था। खेलते-खेलते वह जंगल के पास वाली सड़क पर निकल आया। सड़क पर एक बस खड़ी थी।
छोटे बाघ ने देखा कि बस का दरवाजा खुला है।बाघ ने अपने अगले पंजे बस की सीढ़ी पर रखकर बस के भीतर देखने लगा।
उसने देखा बस के भीतर आगे तरफ से घरर- घरर की आवाज आ रही थी। उसके पास एक आदमी बैठा है। छोटे बाघ ने यह भी देखा कि उस आदमी के सामने एक दीवार सी है लेकिन यह दीवार कुछ अजीब थी। इस दीवार में से बाहर की हर चीज साफ-साफ दिखाई दे रही थी
बाघ ने अपना सिर दाहिनी तरफ मोड़ा उसने देखा बस में कई लोग बैठे हैं। आगे वाली सीट पर दो छोटी लड़कियां बैठी थी।
अचानक छोटे बाघ को लगा कि लोग उससे डर रहे हैं और उसे भागना चाहते हैं। तभी सामने की सीट पर बैठा आदमी उठा और अपने दायिनी और वाला दरवाजा खोलकर बाहर कूद गया। बस के बाकी लोग भी तेजी से पीछे वाले दरवाजे की तरफ भागने लगे।
लोगों को भागते देख कर छोटा बाघ कुछ घबराया। वह सीढ़ी से उतरा और बस के नीचे घुस गया। नीचे पहुंँचकर वह बस के आगे वाले पहिए के पास जाकर दुबक गया
लेकिन वहांँ उसे अच्छा नहीं लगा। वह फिर से बस के भीतर जाना चाहता था थोड़ी देर बाद वह बाहर निकला और बस की सीढ़ी पर पंजे रखा भीतर चला गया। वह सामने वाली सीट पर बैठ कर बाहर देखने लगा।
सामने से एक बस आ रही थी। उसमें बहुत सारे लोग बैठे थे। उन्हें देखकर छोटा बाघ सोचने लगा कि उसकी बस के लोग क्यों भाग गए।
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नटखट चूहा
बच्चों, एक था चूहा। बहुत ही नटखट और बड़ा ही चालाक। कुछ न कुछ शरारत करने का उसका हमेशा मन करता रहता था।
एक दिन उसने अपने दिल में सोचा- आज मैं शहर जाऊंगा ।बारिश के कारण दिल से बाहर निकल ले बहुत दिन बीत गए हैं। घर में बैठे-बैठे दिल घबरा गया है।
नटखट चूहा झटपट तैयार होकर शहर की ओर निकल पड़ा। वह मस्ती से झूमता हुआ चला जा रहा था कि रास्ते में उसे एक बड़ी सी कपड़े की दुकान दिखाई दी। दुकानदार अपनी दुकान खोल कर अंदर जा ही रहा था कि नटखट चूहा भी चुपचाप उसके पीछे अंदर चला गया। जैसे ही दुकानदार अपनी जगह पर बैठा उसकी नजर चूहे पर पड़ी ।दुकानदार ने कहा -अरे, तू मेरी दुकान में क्या कर रहा है? चल भाग यहांँ से।
चूहा बोला- मैं अपनी टोपी के लिए कुछ कपड़ा खरीदने आया हूंँ।
दुकानदार- हा, हा! हट यहांँ से। मैं चूहों को कुछ नहीं बेचता।
चूहा गुस्से में बोला- तुम मुझे कपड़ा नहीं बेचोगे?
दुकानदार बोला- भाग यहांँ से बेकार मेरा समय बर्बाद न कर।
चूहा चिल्लाया -तुम मुझे कपड़ा देते हो या नहीं? दुकानदार बोला- नहीं ,बिल्कुल नहीं,
इस बार नटखट चूहे ने गाना गाया-
रातों रात मैं आऊंँगा
अपनी सेना लाऊंँगा
तेरे कपड़े कुतरूँगा
दुकानदार डरकर बोला- चूहे भैया ऐसा न करना, मैं अभी तुम्हें रेशमी कपड़े का टुकड़ा देता हूंँ।
और उसने चूहे को रेशम के कपड़े का टुकड़ा दे दिया। कपड़ा लेकर चूहा उछलता कूदता दुकान से बाहर निकल गया फिर वह एक दर्जी की दुकान में आ पहुंँचा।
चूहे ने कहा- दर्जी जी, मुझे तुमसे कुछ काम है। काम! क्या काम! दर्जी ने गुस्से से पूछा ।
चूहे ने दर्जी को रेशमी कपड़ा दिया और कहा -कृपा इस कपड़े की एक अच्छी टोपी सिल दो ।दर्जी हंँसा
चल हट यहांँ से, मेरा समय खराब न कर। मेरे पास तेरा काम करने का समय नहीं है- दर्जी ने कहा।
अब चूहे को गुस्सा आ गया। वह जोर से चिल्लाया -तो मेरी टोपी सिलोगे या नहीं? नहीं, नहीं, नहीं -दर्जी ने कहा।
तो ठीक है -चूहा बोला और गाने लगा
रातों रात मैं आऊंँगा
अपनी सेना लाऊंँगा
तेरे कपड़े कुतरूँगा
दर्जी ने कहा- चूहे भैया, ऐसा न करना, मैं अभी तुम्हारी टोपी बनाता हूंँ।
और थोड़ी ही देर में दर्जी ने चूहे के लिए एक सुंदर सी रेशमी टोपी तैयार कर दी। नटखट चूहे ने उसे पहना और फिर अपना चेहरा आईने में देखा।
यह टोपी तो एकदम सादी है। मैं इस पर चमकीले सितारे लगवाऊँगा- चूहे ने सोचा।
वह कूदता-फाँदता दुकान से बाहर निकल गया। वह सड़क पर शान से चल रहा था कि उसकी नजर एक छोटी सी दुकान पर पड़ी जहांँ सुनहरे और रुपहले सितारे बिक रहे थे अंदर जाकर वह इधर-उधर उछलने कूदने लगा।
दुकानदार ने कहा- रे चल यहांँ से। तू यहां क्या करने आया है दुकानदार ने कहा मैं अपनी टोपी के लिए सुनहरी और पहले सितारे खरीदने आया हूंँ।
दुकानदार ने कहा -भाग यहांँ से। मुझे बेवकूफ बनाने की कोशिश न कर। एक चूहे को सितारों से क्या मतलब? तुम मुझे सितारे बेचोगे या नहीं? चूहे ने गुस्से से पूछा। नहीं, नहीं ,नहीं मैं तुम्हें तारे नहीं बेचूँगा-दुकानदार ने कहा।
फिर चूहे ने उत्तर दिया -
रातों रात मैं आऊंँगा
अपनी सेना लाऊंँगा
तेरे कपड़े कुतरूँगा
दुकानदार ने कहा- चूहे भैया, ऐसा न करना। मैं तुम्हारी टोपी के लिए रंग-बिरंगे सितारे दे दूंँगा और यही नहीं, उन्हें तुम्हारी टोपी में टाँक भी दूंँगा ।
अच्छा, तो जरा जल्दी करो- चूहे ने कहा। टोपी बनकर तैयार हो गई ।चूहा टोपी पहनकर आईने के सामने खड़ा हुआ तो खुशी से उसका मन नाच उठा। वह सोचने लगा- मैं भी किसी राजा से कम नहीं हूंँ। मैं अपनी सुंदर टोपी किसे दिखाऊं? चलो अपनी चमकीली टोपी राजा को ही दिखाता हूंँ।
एक घंटे के अंदर ही अंदर नटखट चूहा राज महल में राजा के पास पहुंँचा। वे राजा के सामने आ खड़ा हुआ राजा अचानक चूहे को देखकर बहुत हैरान हुआ। उसने पूछा- अरे तुम यहांँ क्या कर रहे हो?
चूहे ने कहा- महाराज, पहले यह बताइए कि मैं इस टोपी में कैसा लग रहा हूंँ।
राजा ने जवाब दिया- वाह, तुम तो एकदम राजकुमार लग रहे हो।
चूहा झटपट बोला- अच्छा तो फिर उतारो गद्दी से उतरो गद्दी से।
राजा को हंँसी आ गई। उसने कहा- भाग यहांँ से ।मेरा सिंहासन चूहों के लिए नहीं है। केवल एक राजा इस पर बैठ सकता है।
चूहे ने पूछा -तो क्या तुम मुझे अपनी गद्दी नहीं दोगे?
बिल्कुल नहीं। मैं तुम्हें अपना सिंहासन नहीं दूंँगा -राजा ने उत्तर दिया।
तो तुम नहीं उतरोगे? चूहे ने फिर से पूछा।नहीं, नहीं -राजा अपनी बात पर अड़ा रहा।
राजा ने आदेश दिया पकड़ लो चूहे को। सिपाही चूहे को पकड़ने दौड़े। चूहा सरपट उनके बीच से निकल गया और सिपाही एक दूसरे के ऊपर गिर पड़े। अब चूहे ने अपनी कमर पर हाथ रख कर कहा -
रातों रात मैं आऊंँगा
अपनी सेना लाऊंँगा
तेरे कपड़े कुतरूँगा
राजा ने सोचा ,चूहों की फौज तो पूरे महल को तहस-नहस कर देगी ।वह डर से काँपने लगा ।
रातों रात मैं आऊंँगा
अपनी सेना लाऊंँगा
तेरे कपड़े कुतरूँगा
राजा डर से कांँपने लगा। काँपती आवाज़ में उसने कहा- चूहे भैया, तुम बेकार में नाराज हो रहे हो। मैं अपनी गद्दी से अभी उतरता हूंँ और तुम शौक से जितनी देर चाहो इस पर बैठ सकते हो।
चूहा बहुत खुश हुआ। शान से, वह सिंहासन पर बैठ गया और काफी देर तक वहांँ आराम करता रहा। रात जब काफी बीत गई वह गद्दी से कूदकर नीचे आया और खुशी-खुशी अपने घर को चल दिया ।
उसने अब शान से अपनी चमकीली टोपी अपने सभी साथियों को दिखाई ।सभी दोस्त उसकी कहानी सुनना चाहते थे।
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एक्की दोक्की
दो बहने थीं। एक का नाम था एककेसवाली और दूसरी का नाम था दोनकेसवाली ।दोनों बहने अपने अम्मा और अब्बा के साथ बाबा के साथ एक छोटे से घर में रहती थी।
एककेसवाली का एक ही बाल था। इसलिए सब उसे एक्की बुलाते थे। दोनकेसवाली बड़ी घमंडी थी। उसके दो बाल थे। इसलिए सब उसे दोक्की बुलाते थे।
अम्मा सोचती थी कि दोक्की जैसी सुंदर लड़की तो दुनिया में है ही नहीं। और बाबा उनको सोचने की फुर्सत ही कहांँ। काम में जो उलझे रहते थे।
दोक्की हमेशा अपनी बहन पर रौब जमाती रहती। एक दिन एक्की घने जंगल में गई। चलते-चलते वह घने जंगल के बीच पहुंँची। चारों तरफ सन्नाटा था। अचानक उसने एक आवाज़ सुनी-पानी! मुझे प्यास लगी है! कोई पानी पिला दो!
एक्की रुकी और उसने चारों तरफ घूम कर देखा वहांँ तो कोई नहीं था। फिर उसने देखा, सुखी ,मुरझाई हुई मेहंँदी की एक झाड़ी जिसके पत्ते सरसरा रहे थे।
पास में ही पानी की धारा बह रही थी। एक्की ने चुल्लू में पानी भरकर एक बार, दो बार, कई बार झाड़ी के ऊपर डाला।
मेहंँदी की झाड़ी बोली- धन्यवाद एक्की !मैं तुम्हारी ये मदद याद रखूंँगी ।
एक्की आगे बढ़ गई।
फिर अचानक सन्नाटे में उसे एक और आवाज सुनाई दी- मुझे भूख लगी है! कोई मुझे खाना खिला दो! एक्की ने देखा एक मरियल सी गाय पेड़ से बंधी हुई थी
एक्की ने घास-फूस इकट्ठी की और गाय को खिला दी। उसके बाद उसने गाय के गले में बंधी रस्सी को खोल दिया।
धन्यवाद एक्की मैं तुम्हारी यह मदद हमेशा याद रखूंँगी। गाय ने कहा।
एक्की चलते-चलते थक गई थी उसे गर्मी भी लग रही थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि अब वह क्या करें? कहां जाए? तभी उसे दूर एक झोपड़ी दिखाई दी। एक्की दौड़ कर झोपड़ी तक गई और आवाज लगाई ।कोई है?
एक बूढ़ी अम्मा ने दरवाजा खोला ।बूढ़ी अम्मा ने कहा -आहा!आ गई मेरी बच्ची ?मैं तुम्हारी ही राह देख रही थी। आओ, अंदर आ जाओ। एक्की हैरान हो गई और चुपचाप झोपड़ी में आ गई।झोपड़ी में आकर उसे बहुत अच्छा लगा।
बूढ़ी अम्मा ने कहा- आओ बेटी, तुम्हारे लिए नहाने का पानी तैयार है। पहले अच्छी तरह से तेल लगाओ और उसके बाद नहालो। फिर हम खाना खाएंँगे। एक्की ने शर्माते हुए कहा- नहीं !नहीं !अम्मा ने पुकार कर कहा- अरे नहीं क्या !जैसा मैं कहती हूंँ वैसा करो।
एक्की ने बूढ़ी अम्मा की बात मान ली। फिर पता है क्या हुआ?
एक्की ने जैसे ही अपने सिर से तौलिया हटाया तो उसके उसने पाया कि उसके सिर पर एक नहीं परंतु बहुत सारे बाल थे।
एक्की इतनी खुश थी कि वह खाना खा ही नहीं सकी। बस बार-बार बूढ़ी अम्मा का धन्यवाद ही करती रही! बूढ़ी अम्मा ने मुस्कुराते हुए कहा -अब तुम घर जाओ बेटी और हमेशा खुश रहो।
एक्की के तो जैसे पंख निकल आए। वह सरपट घर की तरफ दौड़ चली। रास्ते में उसे गाय ने मीठा मीठा दूध दिया और झाड़ी ने हाथों पर जाने के लिए मेहंँदी घर पहुंँचकर एक्की ने सारी कहानी सुनाई।
दोक्की की कहानी सुनते ही सीधे जंगल की तरफ भागी।दोक्की इतना तेज भाग रही थी कि न उसे प्यासी झाड़ी और न ही भूखी गाय की पुकार सुनी।
वह तो धड़धड़ाती हुई झोपड़ी में घुस गई और बूढ़ी अम्मा को हुकम दिया- मेरे लिए नहाने का पानी तैयार करो।
हांँ, आओ, मैं तुम्हारी ही राह देख रही थी। पानी तैयार है नहा लो- बुढ़िया अम्मा ने दोक्की से कहा ।झटपट नहाने के बाद जैसे ही दोक्की ने तोलिया सिर से हटाया ,उसकी तो चीख निकल गई !
दोक्की के दो ही तो बाल थे और वे भी झड़ गए थे ।रोते-रोते दोक्की घर की तरफ चलने लगी। रास्ते में उसे गाय ने सींग मारा और मेहंँदी की झाड़ी ने काँटे चुभो दिए। मगर अब दोक्की अपना सबक सीख चुकी थी। इसके बाद एक्की , दोक्की अपने अम्मा बाबा के साथ खुशी-खुशी रहने लगी।
अध्यापिका की सीख
संयम अपने पिता के साथ नए स्कूल में दाखिला लेने गया था। दाखिले की सब कार्यवाही पूरी करके उसके पिताजी चले गए। उसे एक चपरासी ने उसकी कक्षा में पहुंँचा दिया। अध्यापक ने उसका परिचय सबसे करवाया। उसने एक नजर पूरी कक्षा पर डाली और एक खाली पड़ी कुर्सी पर जाकर बैठ गया और अध्यापिका ने उसे कहा ,"अंकुश बहुत ही होशियार बालक है। तुम उसकी मदद ले से अपना सारा काम पूरा कर लेना।" सही हमको अंकुश की प्रशंसा अच्छी नहीं लगी।
थोड़ी देर में आधी छुट्टी की घंटी बजी। सभी बच्चे खाना खाने लगे। अंकुश संयम के पास आया और बोला ,"आओ संयम !खाना खाएँ। "संयम ने उसे अनदेखा करते हुए अपना खाना खाने लगा। छुट्टी के समय अभी अंकुश ने संयम से बात करनी चाहिए परंतु वह बड़ी शान से अपनी गाड़ी में बैठा और चल दिया। अंकुश ,अमन ,वैभव,बबीता और दूसरे सहपाठियों को उसका यह व्यवहार अच्छा नहीं लगा ।कक्षा में संयम जब भी बात करता अपने बड़े घर ,नौकरों ,गाड़ियों आदि की ही बातें करता। उसके घमंडी सवभाव के कारण उसके दोस्तों ने धीरे-धीरे उसकी तरफ ध्यान देना बंद कर दिया।
एक दिन सायं आधी छुट्टी के समय अकेला पेड़ के नीचे बैठा था ।सब बच्चे मिलकर खेल रहे थे। किसी ने उसकी ओर ध्यान नहीं दिया। तभी अध्यापिका का ध्यान संयम की और गया। जो उदास बैठा था। संयम के पास जाकर उन्होंने उससे भी सबके साथ मिलकर खेलने को कहा। वह रूआँसा होकर बोला ,"कोई भी मुझ से बात नहीं करता।" अध्यापिका जी ने उसे अपने कमरे में बुलाकर कहा है कि वे उसे कुछ समझाना चाहती हैं। उन्होंने पानी के दो गिलास लिए। गिलास में तेल की कुछ बूंदे डाली और दूसरे में दूध की। तेल पानी में तैरने लगा और दूध पानी में घुल मिल गया। अभी एक अध्यापिका ने संयम से कहा," जीवन में तेल की तरह सब के ऊपर जाने का प्रयास मत कर,सदा दूध की तरह सब से मिलकर हो।" संयम को अपनी गलती समझ में आ गई। दूसरे दिन अध्यापिका ने देखा कि संयम भी मैदान में सभी दोस्तों के साथ मिलजुल कर खेल रहा था।
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मुझे सोने दो
सौरव बहुत नटखट व शरारती बच्चा था। वह कभी थकता ही नहीं था। उसे रात में जल्दी सोना अच्छा नहीं लगता था ।उसके माता-पिता उसे हमेशा समझाते। हमें समय पर सोना चाहिए ।रात की नींद हमारे लिए बहुत जरूरी है पर सौरभ किसी की भी बात नहीं सुनता था। वह हमेशा रात में देर से सोता था।
एक दिन सौरभ के माता-पिता उसके लिए नाना जी के घर गए ।उन्होंने उन्हें सारी बात बताई ।सौरव के नाना ने उन्हें एक बिल्ली दी।वे बोले ,"यह बहुत मोटी व व्यस्त है ।तुम इस बिल्ली को ले जाओ। सौरभ जल्दी सोने लगेगा" फिर नाना जी ने उनके कान में फुसफुसाते हुए कुछ कहा। नाना जी की बात सुनकर सौरभ के माता-पिता के चेहरे पर मुस्कान आ गई ।वह बिल्ली को अपने साथ अपने घर ले आए।
उसी रात भी वही हुआ। जब माँ ने सौरव से दस बजे सोने को कहा ,तो उसने मना कर दिया। तभी माँ ने देखा, बिल्ली धीरे से उठी और सौरभ के कमरे में चली गई। सौरव के पलंग पर आराम से फैलकर सो गई।दो घंटे बाद सौरव सोने के लिए अपने कमरे में आया। पर यह क्या! वहां तो बिल्ली सोई थी।
अब सौरव क्या करें? वह चुपचाप बिल्ली के पास ही लेट गया। उस रात बिल्ली ने लातें मारा -मारकर सौरभ को जमीन पर गिरा दिया वह फिर उठकर पलंग पर लेटा तो बिल्ली ने जोर-जोर से खराटे लेने शुरू कर दिए। सौरव पूरी रात सो नहीं पाया।
अगली रात फिर वही हुआ सौरव फिर देर से अपने कमरे में पहुंँचा। आज भी बिल्ली उसके बिस्तर पर पहले से सोई हुई थी। सौरव को बहुत गुस्सा आया। उसने मन ही मन कुछ सोचा और बिल्ली के साथ सोने की कोशिश करने लगा। अगली रात जैसे ही माँ ने सौरभ को सोने को कहा ,वह दौड़ता हुआ अपने कमरे में जाकर पलंग पर लेट गया। सोते-सोते हुए हड़बड़ा रहा था ,।"बिल्ली मुझे परेशान मत करो। मुझे सोने दो।" सौरव को समय पर सोता देख उसके माता-पिता बहुत खुश हुए ।बिल्ली के आने से सचमुच सौरभ जल्दी सोने लगा था।
चिड़िया ने सब को जगाया
एक वृक्ष पर एक चिड़िया घोसला बनाकर रहती थी।सवेरा होते ही सूर्य निकला। चिड़िया ने देखा ,सब अभी तक सोए हैं। वह मुर्गे के पास गई। उसने उसे जगाया। मुर्गा बोला ,"कुकड़ू -कू" पर तब भी कोई नहीं जगा। फिर वह हाथी के पास गई। उसने उसे जगाया। हाथी को लेकर वह दरिया किनारे गई। जहांँ बंदर वृक्ष पर सोया था। हाथी ने सूंड में जल भरकर बंदर पर डाल दिया।
वह चौंक कर जागा।बंदर ने वृक्ष तोड़कर हाथी को दिया। अब चिड़िया खरगोश के पास गई। उसे जगाया फिर उसने चोंच में एक दाना उठाया ।उसने उसे चूहे के बिल में डाल दिया। चूहा जाग गया ।जब सारे जाग गए। तो बंदर एक खरबूजा ले आया ।सब ने मिलकर खाया ।खरबूजा खा कर सब अपने-अपने कार्य में लग गए।
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चलो केक बनाएं
जून का महीना था। गर्मियों की छुट्टियां पड़ गई थी ।मोहित ,मुदिता, रेहान और रुचि शिखा के घर आए हुए थे। शिखा के माता-पिता घर पर नहीं थे। सिखा ने अपनी बड़ी बहन परी से अपने मित्रों के लिए कुछ बनाने को कहा ।परी ने सोचा कि सबके लिए केक बनाती हूंँ।
परी: मोहित ,केक बनाने में मेरी मदद करो।
मोहित: मैं कहानी पढ़ रहा हूंँ। मदद नहीं कर सकता हूँ।
परी: शिखा,केक बनाने में मेरी मदद करो।
शिखा :मैं तो गपशप कर रही हूंँ मदद नहीं कर सकती हूंँ।
परी: रेहान केक बनाने में मेरी मदद करो।
रेहान: मैं तो कंप्यूटर में चित्र बना रहा हूंँ, तुम्हारी मदद नहीं कर सकता ।
परी: रुचि ,केक बनाने में मेरी मदद करो। रुचि :मैं तो अपनी गुड़िया से खेल रही हूंँ। मदद नहीं कर सकती।
परी :मुदिता,केक बनाने में मेरी मदद करो। मुदिता :मैं तो कार्टून देख रही हूंँ, मदद नहीं कर सकती हूंँ।
परी: ठीक है। मैं खुद ही बना लेती हूंँ।
परी ने रसोई में आकर एक कटोरे में कुछ अंडों को फेंटा ।उसमें पिसी चीनी, मक्खन और मैदा डालकर मिलाया ।इसके बाद कटोरे को ओवन में रख दिया।
आधे घंटे में ही पूरे घर में ताजे केक की सुगंध फैल गई। उसने अपने खाने के लिए केक का एक बड़ा टुकड़ा काटा। सभी बच्चे केक की ओर देख रहे थे।
मुदिता: इसकी खुशबू बहुत अच्छी है। मुझे भी थोड़ा सा खाने दो।
परी: सचमुच केक बहुत स्वादिष्ट है, पर तुम्हारे पास तो इसे खाने के लिए भी समय नहीं होगा। परी की बात सुनकर सब बच्चों का सिर शर्म से झुक गया। उन्होंने परी से माफी मांगी और अच्छा बच्चा बनने का वादा किया ।
मोहित: मैं सबके लिए शरबत बनाता हूंँ।
मुदिता :मैं चिप्स के पैकेट ले आती हूंँ।
रेहान :मेरे पास बिस्कुट है। मैं उन्हें ले आता हूंँ।
रुचि : मैं सारे बर्तन साफ कर दूंँगी।
शिखा :मैं मेज पर सारी चीजें लाकर रख दूंँगी ।
परी( मुस्कुराते हुए )ठीक है ,चलो दावत करते हैं ।
सारे बच्चे -हाँ,हुरे! मजा आ गया।
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गुनगुनाओ
बारह महीने एक साल में,
बारी-बारी आते हैं।
समय बदलता रहता हरदम,
हमको यही सिखाते हैं।
जनवरी,फरवरी, मौज करेंगे,
मार्च-अप्रैल मस्त रहेंगे।
मई-जून में होगी धूम,
जुलाई-अगस्त में सब लो झूम।
सितंबर अक्टूबर नाचे गाएँ। नवंबर , दिसंबर खुशी मनाएँ।
हम न रहेंगे कभी उदास
क्योंकि हम हैं सबसे खास।
कहांँ है भूत
गर्मियों की शाम थी। सूरज ढल चुका था। कुछ बच्चे बगीचे में खेल रहे थे। भागते-भागते हुए झाड़ियों में पहुंँचे। तभी एक लड़की बोली," ठहरो ,आगे मत जाना। उस पेड़ को देख रहे हो। उस पर भूत रहता है।" हाँ, हाँ! मेरे भैया भी बता रहे थे, सचमुच उस पेड़ पर भूत रहता है।" एक लड़का बोला।" हाँ, मैंने भी सुना है। वह भूत बच्चों को पकड़ लेता है। चलो, यहांँ से भागे।" दूसरा लड़का बोला। सब बच्चे वापस दौड़े। तभी एक छोटा लड़का बोला, "ठहरो, मैं नहीं मानता कि वहांँ कोई भूत रहता है। लो मैं अभी उस पेड़ पर चढ़कर दिखाता हूंँ। "यह कहकर वह फौरन ही पेड़ की तरफ चला गया।
सब बच्चे डर कर झाड़ियों के पीछे छुप गए। लड़का दौड़ता हुआ गया और झटपट पेड़ पर चढ़ गया। वह वहीं से चिल्लाया, आओ,देखो, कहांँ है भूत? तुम सब बेकार ही डर रहे हो।" छिपे हुए बच्चे एक-एक करके झाड़ियों से बाहर निकले ।वह छोटा लड़का हंँसता हुआ पेड़ से उतरा और बोला," बोलो, कहांँ गया अब वह भूत! यहां कोई भूत नहीं है।"
पल भर में ही सब बच्चों का डर गायब हो गया। जानते हो भूत का वह भगाने वाला यह कोई साधारण लड़का नहीं था। यह नरेंद्र नाथ था, जो बड़ा होकर स्वामी विवेकानंद कहलाया।
मैं चांँद बोल रहा हूंँ
मैं चांँद हूंँ। मैं धरती से बहुत सुंदर दिखता हूंँ। तुमने मेरा जादू देखा है न? कभी मैं छोटा दिखता हूंँ कभी मैं पूरा गोल दिखाई देता हूंँ। मेरा आकार घटता बढ़ता रहता है। दरअसल बात यह है कि मेरे पास अपनी रोशनी नहीं है सूरज मुझे अपनी रोशनी देता है। जिससे मैं चमकता हूंँ।
पृथ्वी जब घूमते हुए बीच में आ जाती है। तो मैं पतला सा दिखाई हूंँ। पृथ्वी प्रतिदिन जैसे जैसे घूमते हुए आगे बढ़ जाती है तो मैं ज्यादा दिखाई देता हूंँ। मैं जिस दिन पूरा दिखता हूंँ उसे पूर्णिमा कहते हैं। जब मैं बिल्कुल नहीं दिखता। उसे अमावस्या कहते हैं। जानते हो मैं पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाता हूंँ।
वास्तव में मुझ पर चारों और मिट्टी मिट्टी है। मेरे यहां धरती की तरह जीवन और पानी नहीं है। यहांँ पेड़ और फूल नहीं उगते। यहां हवा नहीं है ।जानते हो, सबसे पहले अंतरिक्ष यात्री नील आर्मस्ट्रांग ने मेरे ऊपर कदम रखा था ।राकेश शर्मा यहांँ आने वाले पहले भारतीय पुरुष थे। मुझ पर अनेक कवियों ने कविताएंँ लिखी हैं, और तुम बच्चे तो मुझे अच्छे से जानते हो। अरे मैं हूंँ, तुम्हारा चंदा-मामा!
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तीन मूर्ति का भवन
मैं अपनी कक्षा के साथ तीन मूर्ति भवन गया था ।हम वहांँ विद्यालय की बस से गए थे। वह हमें चाचा नेहरू का घर देखा। उनका सोने का कमरा और काम करने का कमरा भी देखा। वहांँ हमने उनकी बेटी इंदिरा गांधी का भी कमरा देखा। हमारी अध्यापिका ने हमें वह कमरा भी दिखाया। जहांँ चाचा नेहरू ने प्रधानमंत्री बनने की शपथ ली थी। मुझे अपने मित्रों के साथ यह सब देख कर बहुत मजा आया और मेरा अनुभव बहुत अच्छा रहा।
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हिंदी भाषा को सीखने के लिए जरूरी है कि आप हिंदी भाषा को हिंदी वर्णमाला से शुरू करें और फिर मात्राओं का अच्छे से अभ्यास करते हुए धीरे-धीरे आगे बढ़े। जिससे आपको हिंदी भाषा को सीखने में किसी समस्या का सामना न करना पड़े।
हम अपने इस ब्लॉग में हिंदी भाषा की वर्णमाला और मात्राओं का अच्छे से अभ्यास कर लिया है। अब आपके लिए छोटे-छोटे निबंध है। जिसे पढ़कर आप हिंदी भाषा को अच्छे से समझ सकते हैं, और हिंदी भाषा पर अपनी अच्छी पकड़ बना सकते हैं। कभी-कभी ऐसा होता है कि हम हिंदी भाषा की वर्णमाला और मात्राओं को अच्छी तरह सीख लेते हैं, लेकिन हमारे पास पढ़ने के लिए आसान और सरल हिंदी भाषा की पुस्तकें उपलब्ध नहीं होती। जिस से हम अपने अभ्यास को आगे नहीं बढ़ा सकते। इसलिए हम यहांँ पर आपके लिए छोटे-छोटे और आसान हिंदी भाषा में निबंध उपलब्थ है। जिससे आप हिंदी भाषा को पढ़ना, लिखना आसानी से सीख सके।
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