Hindi Moral Values Stories(Part-4)

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     बालक चंद्रगुप्त 

🌟 राजा और बालक की कहानी
        बहुत समय पहले जब मगध में राजा महापद्मनंद का शासन था। उन्होंने मौर्य सेनापति को कैद कर लिया। सेनापति का परिवार बड़ी मुश्किल से अपना जीवन बिता रहा था।

        एक दिन सेनापति के घर के बाहर एक छोटा लड़का खेल रहा था। 😊 वह अपने दोस्तों के साथ राजा-प्रजा का खेल खेल रहा था। कुछ लड़कों को उसने घोड़ा 🐴 और कुछ को हाथी 🐘 बनाया। वह राजा बनकर दंड और पुरस्कार बाँट रहा था।

🌿 चाणक्य की उत्सुकता
        उसी समय चाणक्य जो एक समझदार और बुद्धिमान ब्राह्मण थे। वहाँ से गुजर रहे थे। उन्होंने बालक के खेल को ध्यान से देखा। यह देखकर उन्हें मज़ा भी आया और जिज्ञासा भी हुई।चाणक्य ने उस बालक से कहा, "राजन, मुझे दूध पीने के लिए गाय चाहिए।" 🐄

          बालक ने राजा जैसा व्यवहार करते हुए उदारता से कहा, "इन गायों में से जितनी चाहिए, ले लो।"
चाणक्य ने मुस्कुराते हुए पूछा, "अगर गायों के मालिक ने मना कर दिया तो?"बालक ने गर्व से उत्तर दिया, "कौन है जो मेरी आज्ञा नहीं मानेगा? जब मैं राजा हूँ, तो मेरी बात ज़रूर मानी जाएगी।"

🤔 चाणक्य का प्रश्न
        चाणक्य ने बालक से पूछा, "राजन! आपका नाम क्या है?"तभी बालक की माँ वहाँ आ गई। उसने हाथ जोड़कर कहा, "महाराज, यह बड़ा शरारती बच्चा है। इसकी बातों पर ध्यान मत दीजिए।"

🌱 चाणक्य का आशीर्वाद
       चाणक्य ने कहा, "नहीं, यह बालक बहुत होनहार है। इसे राजा बनने का गुण सिखाना चाहिए। इसे गुरुकुल भेजो।"माँ ने रोते हुए कहा, "हम पर राजा का क्रोध है। इसके पिता को राजा ने कैद कर लिया है।"

       चाणक्य ने भरोसा दिलाया, "इस बालक को कोई नुकसान नहीं होगा। इसे गुरुकुल जरूर भेजो।"
चाणक्य ने बालक को आशीर्वाद दिया और वहाँ से चले गए। 🙏
✨ यह बालक ही आगे चलकर चंद्रगुप्त मौर्य बना, जिसने इतिहास रचा।

 पिंजरे में मोम का सिंह(हिंदी कहानी)

🌟 राजसभा में एक अनोखी चुनौती


       एक दिन चंद्रगुप्त की मां अपने बेटे को लेकर डरते-डरते राजसभा में पहुँची। उसी समय एक पड़ोसी राजा ने महापद्मनंद की राजसभा में लोहे के पिंजरे में मोम का सिंह 🦁 भेजा। साथ ही यह संदेश दिया कि पिंजरे को खोले बिना सिंह को बाहर निकालो।
        उस समय राजा लोग एक-दूसरे की बुद्धिमत्ता और शक्ति की परीक्षा लेने के लिए ऐसे अजीब-अजीब सवाल भेजते थे। महापद्मनंद, जो निष्ठुर और मूर्ख राजा था। इस चुनौती को लेकर परेशान था। उसकी राजसभा में केवल चापलूस और मूर्ख लोग भरे हुए थे।
🌿 राजसभा में बेचैनी
      राजसभा के सभी सदस्य पिंजरे को खाली करने के उपाय सोच रहे थे लेकिन किसी को कोई तरीका समझ नहीं आया। इसी बीच चंद्रगुप्त अपनी मां के साथ बैठा यह सब देख रहा था।

😊 चंद्रगुप्त की चुनौती
        चंद्रगुप्त ने उत्साह से कहा, "मैं इस पिंजरे को खाली कर सकता हूँ।" उसकी बात सुनकर सब लोग हँस पड़े।राजा महापद्मनंद भी चौंक गया और उसने पूछा, "यह लड़का कौन है?"राजसभा के लोगों ने बताया कि यह राजबंदी मौर्य सेनापति का बेटा है। यह सुनकर राजा के क्रोध में और इजाफा हो गया। उसने कहा, "यदि तू इस पिंजरे को खाली नहीं कर सका तो तुझे भी इसी पिंजरे में बंद कर दिया जाएगा।"

😟 मां की चिंता, चंद्रगुप्त का साहस
चंद्रगुप्त की मां यह सुनकर परेशान हो गईं। उन्हें लगा कि यह बड़ी विपत्ति आ गई है। लेकिन चंद्रगुप्त ने निर्भीकता दिखाते हुए पिंजरे के पास जाने की अनुमति मांगी।

🔥 पिंजरे को खाली करने की तरकीब
चंद्रगुप्त ने पिंजरे के पास जाकर उसे ध्यान से देखा। फिर उसने लोहे की सलाखों को गर्म 🔥 किया और मोम के सिंह को धीरे-धीरे पिघला दिया। इस तरह पिंजरा खाली हो गया।

👏 सभी हुए हैरान
राजसभा के सभी सदस्य यह देख कर हैरान रह गए। राजा भी चंद्रगुप्त की बुद्धिमत्ता और साहस से प्रभावित हुआ।

👑 चंद्रगुप्त का परिचय और नई शुरुआत
राजा महापद्मनंद ने उससे पूछा, "तुम्हारा नाम क्या है?"
चंद्रगुप्त ने गर्व से उत्तर दिया, "मेरा नाम चंद्रगुप्त है।"
        राजा ने प्रसन्न होकर उसे तक्षशिला विश्वविद्यालय 📚 में पढ़ाई करने के लिए भेज दिया। आगे चलकर यही बालक चाणक्य के मार्गदर्शन में महान सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य बना और इतिहास रच दिया।
🌟 चंद्रगुप्त का साहस और बुद्धिमत्ता आज भी प्रेरणा देती है।

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            मंत्र(हिंदी कहानी)

🌟 नन्हा राम और उसकी चालाकी
         नन्हा राम उम्र में भले ही छोटा था पर समझदारी और चालाकी में किसी बड़े से कम नहीं था। उसका भोला-भाला चेहरा देखकर कोई यह नहीं कह सकता था कि वह शरारतों का बादशाह है। उसके पिता शंकराचार्य अक्सर कहते थे, "मुंह में राम, बगल में छुरी" वाली कहावत राम पर ही बनाई गई होगी।

🌿 परमेश्वर का डर दिखाने की कोशिश
        एक दिन शंकराचार्य ने राम की किसी शरारत पर उसे डांटते हुए कहा, "देख राम अच्छा लड़का बन जा। नहीं तो परमेश्वर तुझसे नाराज हो जाएंगे।"राम ने भोलेपन से पूछा, "बापू जी, यह परमेश्वर कौन हैं?"

शंकराचार्य ने समझाने की कोशिश की, "भगवान, हम सबसे बड़े हैं।"राम ने मासूमियत से कहा, "बापू जी, मुझे परमेश्वर दिखा दीजिए।"शंकराचार्य इस सवाल का कोई जवाब नहीं दे सके और झुंझलाकर बोले, "जा राम, दिमाग मत खा। मुझे काम करने दे।"

🚂 पुणे की यात्रा और राम की टोपी
      कुछ दिन बाद शंकराचार्य को किसी काम से पुणे जाना पड़ा। उन्होंने सोचा कि अपनी बहन से भी मिल लेंगे। जो राम को देखने के लिए काफी उत्सुक थीं। वह राम को भी साथ ले गए।ट्रेन 🚆 में शंकराचार्य अखबार पढ़ने में व्यस्त थे और राम खिड़की से बाहर झांक रहा था। हवा के तेज झोंके आ रहे थे और राम की नई टोपी उसकी सिर पर चमक रही थी।
       शंकराचार्य ने टोपी को लेकर कहा, "इसे उतारकर रख ले।हवा इसे उड़ा ले जाएगी।"राम ने उनकी बात मान ली लेकिन कुछ ही देर बाद टोपी फिर उसके सिर पर थी। जब शंकराचार्य ने देखा तो गुस्से में आकर टोपी उतारकर उसकी गोद में रख दी।
🤔 राम की शरारत
      राम ने फिर खिड़की के पास जाकर बाहर झांकना शुरू कर दिया। इस बार शंकराचार्य ने टोपी को सीट के नीचे फेंक दिया। राम ने सोचा कि टोपी ट्रेन से बाहर गिर गई है। उसने रोते हुए कहा, "मेरी टोपी!"
शंकराचार्य ने झूठ बोला, "तूने खुद गिरा दी होगी। अब रो मत।"

        राम की आंखों में आंसू आ गए और वह बोला, "पर धक्का तो आपने दिया था।"शंकराचार्य ने उसे चुप कराने की कोशिश की और कहा, "टोपी वापस आ जाएगी पर शर्त है कि तू इसे फिर सिर पर नहीं लगाएगा।"
🪄 मंत्र का खेल
    राम ने उत्साह से कहा, "ठीक है बापू जी! मंत्र पढ़िए।"शंकराचार्य ने उसे आंखें बंद करने को कहा और धीरे से सीट के नीचे हाथ डालकर टोपी निकाल ली। फिर मंत्र पढ़ा, "ऊँ स्वाहा।"राम ने जब आंखें खोलीं तो उसकी टोपी उसकी गोद में थी। वह खुश हो गया।
😂 राम की नई चालाकी-कुछ देर बाद राम ने  शंकराचार्य को फिर आवाज दी, "बापू जी, वही मंत्र फिर से पढ़िए!"शंकराचार्य ने चौंककर पूछा, "क्यों?"
राम ने मुस्कुराते हुए कहा, "आपके कागज जो यहां पड़े थे।मैंने खिड़की से बाहर फेंक दिए हैं।"यह सुनकर शंकराचार्य का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। वह कागजात एक नए मुकदमे के दस्तावेज थे।

😅 राम का मासूम सवाल
राम ने धीरे से कहा, "बापू जी, मंत्र पढ़िए। कागज वापस आ जाएंगे।"शंकराचार्य ने झूठमूठ का मंत्र पढ़ने की बजाय गुस्से को काबू में रखा। राम ने मुस्कुराते हुए कहा, "बापू जी, मैं मंत्र पढ़ता हूं।"राम ने आंखें बंद कीं और बोला, "ऊँ स्वाहा!"इस बार शंकराचार्य कुछ नहीं कर सके।
🎓 शिक्षा
      इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि बच्चों के सामने हमें ईमानदार रहना चाहिए। यदि बड़े चालाकी या झूठ का सहारा लेंगे तो बच्चे भी वही सीखेंगे।मासूमियत और सीखने की उम्र में बच्चों को सही दिशा देना जरूरी है। 😊

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